||श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.१७)
उपदेश विधि
वेदान्तार्थविचारेण जायते ज्ञानमुत्तमम् |
तेनात्यंतिकसंसारदु:खनाशो भवत्याणु ||४७||
तेनात्यंतिकसंसारदु:खनाशो भवत्याणु ||४७||
वेदान्त-वाक्यों के अर्थ का विचार करने से उत्तम ज्ञान होता है, जिससे फिर संसार-दु:ख का आत्यन्तिक नाश हो जाता है)
श्रद्धाभक्तिध्यानयोगान्मुमुक्षो-
र्मुक्तेर्हेतून्वक्ति साक्षाच्छ्रुतेर्गी: |
यो वा एतेष्वेव तिष्ठत्यमुष्य
मोक्षोऽविद्याकल्पिताद्देहबन्धात् ||४८||
र्मुक्तेर्हेतून्वक्ति साक्षाच्छ्रुतेर्गी: |
यो वा एतेष्वेव तिष्ठत्यमुष्य
मोक्षोऽविद्याकल्पिताद्देहबन्धात् ||४८||
(श्रद्धा,भक्ति,ध्यान और योग इनको भगवती श्रुति मुमुक्षु की मुक्ति के साक्षात् हेतु बतलाती है | जो इन्हीं में स्थित हो जाता है उसका अविद्या-कल्पित देह-बन्धन से मोक्ष हो जाता है)
अज्ञानयोगात्परमात्मनस्तव
ह्यनात्मबंधस्तत एव संसृति: |
तयोर्विवेकोदितबोधवह्नि-
रज्ञानकार्यं प्रदहेत्समूलम् ||४९||
ह्यनात्मबंधस्तत एव संसृति: |
तयोर्विवेकोदितबोधवह्नि-
रज्ञानकार्यं प्रदहेत्समूलम् ||४९||
(तुझ परमात्मा का अनात्म-बन्धन अज्ञान के कारण ही है और उसी से तुझको [जन्म-मरणरूप] संसार प्राप्त हुआ है | अत: उन ( आत्मा और अनात्मा) के विवेक से उत्पन्न हुआ बोधरूप अग्नि अज्ञान के कार्यरूप संसार को मूल सहित भस्म कर देगा)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
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