रविवार, 23 सितंबर 2018

||श्री परमात्मने नम: || विवेक चूडामणि (पोस्ट.१८)


||श्री परमात्मने नम: || 

विवेक चूडामणि (पोस्ट.१८)

प्रश्न-निरूपण

शिष्य उवाच

कृपया श्रूयतां स्वामिन्प्रश्नोऽयं क्रियते मया |
तदुत्तरमहं श्रुत्वा कृतार्थ: स्यां भवन्मुखात् ||५०||

(शिष्य- हे स्वामिन् ! कृपया सुनिए; मैं यह प्रश्न करता हूँ | उसका उत्तर आपके श्रीमुख से सुनकर मैं कृतार्थ हो जाऊंगा )

को नाम बन्ध: कथमेष आगत:
कथं प्रतिष्ठास्य कथं विमोक्ष: |
कोऽसावनात्मा परम: क आत्मा
तयोर्विवेक: कथमेतदुच्यताम् ||५१||

(बन्ध क्या है ? यह कैसे हुआ? इसकी स्थिति कैसे है ? और इससे मोक्ष कैसे मिल सकता है ? अनात्मा क्या है ? और उनका विवेक (पार्थक्य-ज्ञान)कैसे होता है? कृपया यह सब कहिये)

शिष्य - प्रशंसा

श्रीगुरुरुवाच

धन्योऽसि कृतकृत्योऽसि पावित्र ते कुलं त्वया |
यद्विद्याबन्धमुक्त्या ब्रह्मीभवितुमिच्छसि ||५२||

(गुरु – तू धन्य है, कृतकृत्य है, तेरा कुल तुझ से पवित्र हो गया,क्योंकि तू अविद्यारूपी बन्धनसे छूटकर ब्रह्मभाव को प्राप्त होना चाहता है)

नारायण ! नारायण !!

शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे


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