||श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.२४)
विषय निंदा
शब्दादिभिः पञ्चभिरेव पंच
पञ्चत्वमापुः स्वगुणेन बद्धाः ।
कुरङ्गमातङ्गपतङ्गमीन-
भृङ्गा नरः पञ्चभिरञ्चितः किम् ॥ ७८ ॥
(अपने-अपने स्वभाव के अनुसार शब्दादि मंच विषयों में से केवल एक-एक से बंधे हुए हरिण, हाथी,पतंग,मछली और भौंरे मृत्यु को प्राप्त होते हैं, फिर इन पाँचों से जकडा हुआ मनुष्य कैसे बच सकता है ?)
दोषेण तीव्रो विषयः कृष्णसर्पविषादपि ।
विषं निहन्ति भोक्तारं द्रष्टारं चक्षुषाप्ययम् ॥ ७९ ॥
(दोष में- विषय काले सर्प के विष से भी अधिक तीव्र है, क्योंकि विष तो खाने वाले को ही मारता है, विषय तो आँख से देखने वाले को भी नहीं छोड़ते)
विषयाशामहापाशाद्यो विमुक्त: सुदुस्त्यजात् |
स एव कल्पते मुक्त्यै नान्य:षट्शास्त्रवेद्यपि ||८०||
(जो विषयों की आशारूप कठिन बन्धन से छुटा हुआ है,वही मोक्ष का भागी होता है और कोई नहीं; चाहे वह छहों दर्शनों का ज्ञाता क्यों न हो)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
विवेक चूडामणि (पोस्ट.२४)
विषय निंदा
शब्दादिभिः पञ्चभिरेव पंच
पञ्चत्वमापुः स्वगुणेन बद्धाः ।
कुरङ्गमातङ्गपतङ्गमीन-
भृङ्गा नरः पञ्चभिरञ्चितः किम् ॥ ७८ ॥
(अपने-अपने स्वभाव के अनुसार शब्दादि मंच विषयों में से केवल एक-एक से बंधे हुए हरिण, हाथी,पतंग,मछली और भौंरे मृत्यु को प्राप्त होते हैं, फिर इन पाँचों से जकडा हुआ मनुष्य कैसे बच सकता है ?)
दोषेण तीव्रो विषयः कृष्णसर्पविषादपि ।
विषं निहन्ति भोक्तारं द्रष्टारं चक्षुषाप्ययम् ॥ ७९ ॥
(दोष में- विषय काले सर्प के विष से भी अधिक तीव्र है, क्योंकि विष तो खाने वाले को ही मारता है, विषय तो आँख से देखने वाले को भी नहीं छोड़ते)
विषयाशामहापाशाद्यो विमुक्त: सुदुस्त्यजात् |
स एव कल्पते मुक्त्यै नान्य:षट्शास्त्रवेद्यपि ||८०||
(जो विषयों की आशारूप कठिन बन्धन से छुटा हुआ है,वही मोक्ष का भागी होता है और कोई नहीं; चाहे वह छहों दर्शनों का ज्ञाता क्यों न हो)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
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