||श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.२५)
विषय निंदा
आपातवैराग्यवतो मुमुक्षून्
भवाब्धिपारं प्रतियातुमुद्यतान् ।
आशाग्रहो मज्जयतेऽन्तराले
विगृह्य कण्ठे विनिवर्त्य वेगात् ॥ ८१ ॥
(संसार-सागर को पार करने के लिए उद्यत हुए क्षणिक वैराग्य वाले मुमुक्षुओं को आशारूपी ग्राह अतिवेग से बीच ही में रोककर गला पकड़कर डुबो देता है)
विषयाख्यग्रहो येन सुविरक्तसिना हतः ।
सः गच्छति भवाम्भोधेः पारं प्रत्यूहवर्जितः ॥ ८२ ॥
(जिसने वैराग्यरूपी खड्ग से विषयैषणारूपी ग्राह को मार दिया है, वही निर्विघ्न संसार-समुद्र के उस पार जा सकता है)
विषमविषयमार्गैर्गच्छतोऽनच् छबुद्धेः
प्रतिपदमभियातो मृत्युरप्येष विद्धि ।
हितसुजनगुरूक्त्या गच्छतः स्वस्य युक्त्या
प्रभवति फलसिद्धिः सत्यमित्येव विद्धि ॥ ८३ ॥
(विषयरूपी विषममार्ग में चलनेवाले मलिनबुद्धि को पद-पद पर मृत्यु आती है—ऐसा जानो | और यह भी बिलकुल ठीक समझो कि हितैषी,सज्जन अथवा गुरु के कथनानुसार अपनी युक्ति से चलने वाले को फल-सिद्धि हो ही जाती है)
मोक्षस्य काङ्क्षा यदि वै तवास्ति
त्यजातिदूराद्विषयान् विषं यथा ।
पीयूषवत्तोषदयाक्षमार्जव-
प्रशान्तिदान्तीर्भज नित्यमादरात् ॥ ८४ ॥
(यदि तुझे मोक्ष की इच्छा है तो विषयों को विष के समान दूर ही से त्याग दे | और संतोष,दया,सरलता,शम और दम का अमृत के समान नित्य आदरपूर्वक सेवन कर )
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
विवेक चूडामणि (पोस्ट.२५)
विषय निंदा
आपातवैराग्यवतो मुमुक्षून्
भवाब्धिपारं प्रतियातुमुद्यतान् ।
आशाग्रहो मज्जयतेऽन्तराले
विगृह्य कण्ठे विनिवर्त्य वेगात् ॥ ८१ ॥
(संसार-सागर को पार करने के लिए उद्यत हुए क्षणिक वैराग्य वाले मुमुक्षुओं को आशारूपी ग्राह अतिवेग से बीच ही में रोककर गला पकड़कर डुबो देता है)
विषयाख्यग्रहो येन सुविरक्तसिना हतः ।
सः गच्छति भवाम्भोधेः पारं प्रत्यूहवर्जितः ॥ ८२ ॥
(जिसने वैराग्यरूपी खड्ग से विषयैषणारूपी ग्राह को मार दिया है, वही निर्विघ्न संसार-समुद्र के उस पार जा सकता है)
विषमविषयमार्गैर्गच्छतोऽनच्
प्रतिपदमभियातो मृत्युरप्येष विद्धि ।
हितसुजनगुरूक्त्या गच्छतः स्वस्य युक्त्या
प्रभवति फलसिद्धिः सत्यमित्येव विद्धि ॥ ८३ ॥
(विषयरूपी विषममार्ग में चलनेवाले मलिनबुद्धि को पद-पद पर मृत्यु आती है—ऐसा जानो | और यह भी बिलकुल ठीक समझो कि हितैषी,सज्जन अथवा गुरु के कथनानुसार अपनी युक्ति से चलने वाले को फल-सिद्धि हो ही जाती है)
मोक्षस्य काङ्क्षा यदि वै तवास्ति
त्यजातिदूराद्विषयान् विषं यथा ।
पीयूषवत्तोषदयाक्षमार्जव-
प्रशान्तिदान्तीर्भज नित्यमादरात् ॥ ८४ ॥
(यदि तुझे मोक्ष की इच्छा है तो विषयों को विष के समान दूर ही से त्याग दे | और संतोष,दया,सरलता,शम और दम का अमृत के समान नित्य आदरपूर्वक सेवन कर )
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें