||श्री परमात्मने नम :||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.०३)
ब्रह्मनिष्ठा का महत्त्व
वदन्तु शास्त्राणि यजन्तु देवान्
कुर्वन्तु कर्माणि भजन्ति देवता : |
आत्मैक्यबोधेन विना विमुक्ति-
र्न सिध्यति ब्रह्मशतान्तरेपि ||६||
कुर्वन्तु कर्माणि भजन्ति देवता : |
आत्मैक्यबोधेन विना विमुक्ति-
र्न सिध्यति ब्रह्मशतान्तरेपि ||६||
( भले ही कोई शास्त्रों की व्याख्या करें, देवताओं का यजन करें, नाना शुभकर्म करें अथवा देवताओं को भजें, तथापि जब तक ब्रह्म और आत्मा की एकता का बोध नहीं होता, तब तक सौ ब्रह्माओं के बीत जाने पर भी [अर्थात् सौ कल्पों में भी] मुक्ति नहीं हो सकती)
अमृतत्वस्य नाशास्ति वित्तेनेत्येव हि श्रुति: |
ब्रवीति कर्मणो मुक्तेरहेतुत्वं स्फुटं यात: || ७||
ब्रवीति कर्मणो मुक्तेरहेतुत्वं स्फुटं यात: || ७||
(क्योंकि ‘धन से अमृतत्व की आशा नहीं है’ यह श्रुति ‘मुक्ति का हेतु कर्म नहीं है’, यह बात स्पष्ट बतलाती है)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें