मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018

||श्री परमात्मने नम: || विवेक चूडामणि (पोस्ट.३५)


||श्री परमात्मने नम: || 

विवेक चूडामणि (पोस्ट.३५)

तमोगुण

एषावृतिर्नाम तमोगुणस्य
शक्तिर्यया वस्त्वभासतेऽन्यथा ।
सैषा निदानं पुरुष्य संसृते-
र्विक्षेपशक्तेः प्रसरस्य हेतुः ॥ ११५ ॥

(जिसके कारण वस्तु कुछ-की-कुछ प्रतीत होने लगती है वह तमोगुण की आवरणशक्ति है | यही पुरुष के (जन्म-मरण-रूप) संसार का आदि-कारण है और यही विक्षेपशक्ति के प्रसार का भी हेतु है)

प्रज्ञावानपि पण्डितोऽपि चतुरोऽप्यत्सन्तसूक्ष्मार्थदृक्
व्यालीढस्तमसा न वेत्ति बहुधा सम्बोधितोऽपि स्फुटम् ।
भ्रान्त्यारोपितमेव साधु कलयत्यालम्बते तद्गुणान्
हन्तासौ प्रबला दुरन्ततमसः शक्तिर्महत्यावृतिः ॥ ११६॥

(तम से ग्रस्त हुआ पुरुष अति बुद्धिमान्, विद्वान, चतुर और शास्त्र के अत्यन्त सूक्ष्म अर्थों को देखने वाला भी हो तो भी वह नाना प्रकार समझाने से भी अच्छी तरह नहीं समझता; वह भ्रम से आरोपित किये हुए पदार्थों को ही सत्य समझता है और उन्हीं के गुणों का आश्रय लेता है | अहो ! दुरन्त तमोगुण की यह महती आवरण-शक्ति बड़ी ही प्रबल है)

नारायण ! नारायण !!

शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे


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