||श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.३४)
रजोगुण
विक्षेपशक्ती रजसः क्रियात्मिका
यतः प्रवृत्तिः प्रसृता पुराणी ।
रागदयोऽस्याः प्रभवन्ति नित्यं
दुःखादयो ये मनसोविकाराः ॥ ११३ ॥
(क्रियारूपा विक्षेपशक्ति रजोगुण की है जिससे सनातनकाल से समस्त क्रियाएँ होती आई हैं और जिससे रागादि और दु:खादि, जो मन के विकार हैं, सदा उत्पन्न होते हैं)
कामः क्रोधो लोभदम्भाद्यसूया-
हङ्कारेर्ष्यामत्सराद्यास्त ु घोराः ।
धर्मा एते राजसाः पुम्प्रवृत्ति-
र्यस्मादेषा तद्रजो बन्धहेतुः ॥ ११४ ॥
(काम, क्रोध, लोभ, दंभ, असूया [गुणों में दोष ढूँढना], अभिमान, ईर्ष्या और मत्सर –ये घोर धर्म रजोगुण के ही हैं | अत: जिसके कारण जीव कर्मों में प्रवृत्त होता है , वह रजोगुण ही उसके बन्धन का हेतु है)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
विवेक चूडामणि (पोस्ट.३४)
रजोगुण
विक्षेपशक्ती रजसः क्रियात्मिका
यतः प्रवृत्तिः प्रसृता पुराणी ।
रागदयोऽस्याः प्रभवन्ति नित्यं
दुःखादयो ये मनसोविकाराः ॥ ११३ ॥
(क्रियारूपा विक्षेपशक्ति रजोगुण की है जिससे सनातनकाल से समस्त क्रियाएँ होती आई हैं और जिससे रागादि और दु:खादि, जो मन के विकार हैं, सदा उत्पन्न होते हैं)
कामः क्रोधो लोभदम्भाद्यसूया-
हङ्कारेर्ष्यामत्सराद्यास्त
धर्मा एते राजसाः पुम्प्रवृत्ति-
र्यस्मादेषा तद्रजो बन्धहेतुः ॥ ११४ ॥
(काम, क्रोध, लोभ, दंभ, असूया [गुणों में दोष ढूँढना], अभिमान, ईर्ष्या और मत्सर –ये घोर धर्म रजोगुण के ही हैं | अत: जिसके कारण जीव कर्मों में प्रवृत्त होता है , वह रजोगुण ही उसके बन्धन का हेतु है)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
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