मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018

||श्री परमात्मने नम: || विवेक चूडामणि (पोस्ट.३३)

||श्री परमात्मने नम: || 

विवेक चूडामणि (पोस्ट.३३)

माया निरूपण

अव्यक्तनाम्नी परमेशशक्ति-
रनाद्यविद्या त्रिगुणात्मिका परा ।
कार्यानुमेया सुधियैव माया
यया जगत्सर्वमिदं प्रसूयते ॥ ११० ॥

(जो अव्यक्त नाम वाली त्रिगुणात्मिका अनादि अविद्या परमेश्वर की पराशक्ति है, वही माया है; जिससे यह सारा जगत् उत्पन्न हुआ है | बुद्धिमान जन इसके कार्य से ही इसका अनुमान करते हैं)

सन्नाप्यसन्नाप्युभयात्मिका नो
भिन्नाप्यभिन्नाप्युभयात्मका नो ।
साङ्गाप्यनङ्गाप्युभयात्मिका नो
महाद्भुतानिर्वचनीयरूपा ॥ १११ ॥

(वह न सत् है न असत् है और न [सदसत् ] उभयरूप है; न भिन्न है न अभिन्न है और न [भिन्नाभिन्न] उभयरूप है, न अंगसहित है न अंगरहित है और न [साङ्गानंग] उभयात्मिका ही है; किन्तु अत्यन्त अद्भुत और अनिर्वचनीयरूपा [जो कही न जा सके ऐसी] है)

शुद्धाद्वयब्रह्मविबोधनाश्य
सर्पभ्रमो रज्जुविवेकतो यथा ।
रजस्तमः सत्त्वमिति प्रसिद्धा
गुणास्तदीयाः प्रथितैः स्वकार्यैः ॥ ११२ ॥

(रज्जु के ज्ञान से सर्प-भ्रम समान वह अद्वितीय शुद्ध ब्रह्म के ज्ञान से नष्ट होने वाली है | अपने अपने प्रसिद्ध कार्यों के कारण सत्त्व, रज और तम—ये उसके तीन गुण प्रसिद्ध हैं)

नारायण ! नारायण !!

शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे


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