||श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.३२)
प्रेम की आत्मार्थता
आत्मार्थत्वेन हि प्रेयान् विषयो न स्वतः प्रियः ।
स्वत एव हि सर्वेषामात्मा प्रियतमो यतः ॥ १०८ ॥
(विषय स्वत: प्रिय नहीं होते, किन्तु आत्मा के लिए ही प्रिय होते हैं, क्योंकि स्वत: प्रियतम तो सबका आत्मा ही है)
तत आत्मा सदानन्दो नास्य दुःखं कदाचन ।
यत्सुषुप्तौ निर्विषय आत्मानन्दोऽनुभूयते ।
श्रुतिः प्रयक्षमैतिह्यमनुमानं च जाग्रति ॥ १०९ ॥
(इसलिए आत्मा सदा आनंदस्वरूप है, इसमें दु:ख कभी नहीं है | तभी सुषुप्ति में विषयों का भाव रहते हुए भी आत्मानंद का अनुभव होता है | इसमें विषय, श्रुति, प्रत्यक्षा, ऐतिह्य (इतिहास) और अनुमान- प्रमाण जागृत [मौजूद] हैं)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
विवेक चूडामणि (पोस्ट.३२)
प्रेम की आत्मार्थता
आत्मार्थत्वेन हि प्रेयान् विषयो न स्वतः प्रियः ।
स्वत एव हि सर्वेषामात्मा प्रियतमो यतः ॥ १०८ ॥
(विषय स्वत: प्रिय नहीं होते, किन्तु आत्मा के लिए ही प्रिय होते हैं, क्योंकि स्वत: प्रियतम तो सबका आत्मा ही है)
तत आत्मा सदानन्दो नास्य दुःखं कदाचन ।
यत्सुषुप्तौ निर्विषय आत्मानन्दोऽनुभूयते ।
श्रुतिः प्रयक्षमैतिह्यमनुमानं च जाग्रति ॥ १०९ ॥
(इसलिए आत्मा सदा आनंदस्वरूप है, इसमें दु:ख कभी नहीं है | तभी सुषुप्ति में विषयों का भाव रहते हुए भी आत्मानंद का अनुभव होता है | इसमें विषय, श्रुति, प्रत्यक्षा, ऐतिह्य (इतिहास) और अनुमान- प्रमाण जागृत [मौजूद] हैं)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
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