मंगलवार, 9 अक्तूबर 2018

||श्री परमात्मने नम: || विवेक चूडामणि (पोस्ट.४२)

||श्री परमात्मने नम: || 

विवेक चूडामणि (पोस्ट.४२)

अध्यास

अत्रानात्मन्यहमिति मतिर्बन्ध एषोऽस्य पुंसः
प्राप्तोऽज्ञानाज्जननमरणक्लेशसम्पातहेतुः ।
येनैवायं वपुरिदमसत्सत्यमित्यात्मबुद्ध्या
पुष्यत्युक्षत्यवति विषयैस्तन्तुभिः कोशकृद्वत् ॥ १३९ ॥

(पुरुष का अनात्म-वस्तुओं में ‘अहम्’- इस आत्मबुद्धि का होना ही जन्म-मरणरूपी क्लेशों की प्राप्ति कराने वाला अज्ञान से प्राप्त हुआ बन्धन है; जिसके कारण यह जीव असत् शरीर को सत्य समझकर इसमें आत्मबुद्धि हो जाने से, तन्तुओं से रेशम के कीड़े के समान, इसका विषयों द्वारा पोषण, मार्जन और रक्षण करता रहता है)

अतस्मिंस्तद्बुद्धिः प्रभवति विमूढस्य तमसा
विवेकाभावाद्वै स्फुरति भुजगे रज्जुधिषणा ।
ततोऽनर्थव्रातो निपतति समादातुरधिक-
स्ततो योऽसद्ग्राहः स हि भवति बन्धः श्रुणु सखे ॥ १४० ॥

(मूढ़ पुरुष को तमोगुण के कारण ही अन्य में अन्य-बुद्धि होती है, विवेक न होने से ही रज्जु में सर्प-बुद्धि होती है; ऐसी बुद्धि वाले को ही नाना प्रकार के अनर्थों का समूह आ घेरता है, अत: हे मित्र ! सुन , यह जो असद्ग्राह (असत् को सत्य मानना) है , वही बन्धन है)

नारायण ! नारायण !!

शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे


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