मंगलवार, 9 अक्तूबर 2018

||श्री परमात्मने नम: || विवेक चूडामणि (पोस्ट.४६)

||श्री परमात्मने नम: || 

विवेक चूडामणि (पोस्ट.४६)

आत्मानात्म - विवेक 

नास्त्रैर्न शस्त्रैरनिलेन वह्निना 
छेत्तुं न शक्यो न च कर्मकोटिभिः ।
विवेकविज्ञानमहासिना विना 
धातुः प्रसादेन सितेन मञ्जुना ॥ १४९ ॥

(यह बन्धन विधाता की विशुद्ध कृपा से प्राप्त हुए विवेक-विज्ञान-रूप शुभ्र और मंजुल महाखड्ग के बिना और किसी अस्त्र, शस्त्र, वायु, अग्नि अथवा करोड़ों कर्मकलापों से भी नहीं काटा जा सकता)

श्रुतिप्रमाणैकमतेः स्वधर्म-
निष्ठा तयैवात्मविशुद्धिरस्य ।
विशुद्धबुद्धैः परमात्मवेदनं 
तेनैव संसारसमूलनाशः ॥ १५० ॥

जिसका श्रुतिप्रामाण्य में दृढ निश्चय होता है, उसी की स्वधर्म में निष्ठा होती है और उसी से उसकी चित्तशुद्धि हो जाती है ; जिसका चित्त शुद्ध होता है उसी को परमात्मा का ज्ञान होता है और इस ज्ञान से ही संसाररूपी वृक्ष का समूल नाश होता है)

नारायण ! नारायण !!

शेष आगामी पोस्ट में 
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे


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