||श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.४५)
बन्ध निरूपण
बीजं संसृतिभूमिजस्य तु तमो देहात्मधीरङ्कुरो
रागः पल्लवमम्बु कर्म तु वपुः स्कन्धोऽसवः शाखिकाः ।
अग्राणीन्द्रिसंहतिश्च विषयाः पुष्पाणि दुःखं फलं
नानाकर्मसमुद्भवं बहुविधं भोक्तात्र जीवः खगः ॥ १४७ ॥
(संसाररूपी वृक्ष का बीज अज्ञान है, देहात्म -बुद्धि उसका अंकुर है, राग पत्ते हैं, कर्म जल है, शरीर स्तंभ (तना) है, प्राण शाखाएं हैं, इन्द्रियाँ उपशाखाएँ (गुद्दे ) हैं, विषय पुष्प हैं और नाना प्रकार के कर्मों से उत्पन्न हुआ दु:ख फल है तथा जीवरूपी पक्षी ही इनका भोक्ता है)
अज्ञानमूलोऽयमनात्मबन्धो
नैसर्गिकोऽनादिरनन्त ईरितः ।
जन्माप्ययव्याधिजरादिदुःख-
प्रवाहपातं जनयत्यमुष्य ॥ १४८ ॥
(यह अज्ञानजनित अनात्म-बन्धन स्वाभाविक तथा अनादि और अनंत कहा गया है | यही जीव के जीवन, मरण, व्याधि और जरा(वृद्धावस्था) आदि दु:खों का प्रवाह उत्पन्न कर देता है)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
विवेक चूडामणि (पोस्ट.४५)
बन्ध निरूपण
बीजं संसृतिभूमिजस्य तु तमो देहात्मधीरङ्कुरो
रागः पल्लवमम्बु कर्म तु वपुः स्कन्धोऽसवः शाखिकाः ।
अग्राणीन्द्रिसंहतिश्च विषयाः पुष्पाणि दुःखं फलं
नानाकर्मसमुद्भवं बहुविधं भोक्तात्र जीवः खगः ॥ १४७ ॥
(संसाररूपी वृक्ष का बीज अज्ञान है, देहात्म -बुद्धि उसका अंकुर है, राग पत्ते हैं, कर्म जल है, शरीर स्तंभ (तना) है, प्राण शाखाएं हैं, इन्द्रियाँ उपशाखाएँ (गुद्दे ) हैं, विषय पुष्प हैं और नाना प्रकार के कर्मों से उत्पन्न हुआ दु:ख फल है तथा जीवरूपी पक्षी ही इनका भोक्ता है)
अज्ञानमूलोऽयमनात्मबन्धो
नैसर्गिकोऽनादिरनन्त ईरितः ।
जन्माप्ययव्याधिजरादिदुःख-
प्रवाहपातं जनयत्यमुष्य ॥ १४८ ॥
(यह अज्ञानजनित अनात्म-बन्धन स्वाभाविक तथा अनादि और अनंत कहा गया है | यही जीव के जीवन, मरण, व्याधि और जरा(वृद्धावस्था) आदि दु:खों का प्रवाह उत्पन्न कर देता है)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
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