ॐ
श्रीमन्नारायणाय नम:
जीवसम्बन्धी प्रश्नोत्तर (पोस्ट 10)
(लेखक: श्री जयदयालजी गोयन्दका
अधोगति---
अधःगतिको प्राप्त होनेवाले वे जीव हैं, जो अनेक प्रकारके पापोंद्वारा अपना समस्त जीवन कलङ्कित किये हुए होते हैं, उनके अन्तकालकी वासना कर्मानुसार तमोमयी ही होती है, इससे वे नीच गतिको प्राप्त होते हैं।
जो लोग अहंकार, बल, घमण्ड, काम और क्रोधादिके परायण रहते हैं, परनिन्दा करते हैं, अपने तथा पराये सभीके शरीरमें स्थित अन्तर्यामी परमात्मासे द्वेष करते हैं। ऐसे द्वेषी, पापाचारी, क्रूरकर्मी नराधम मनुष्य सृष्टि के नियन्त्रणकर्ता भगवान् के विधान से बारम्बार आसुरी योनियों में उत्पन्न होते हैं और आगे चलकर वे उससे भी अति नीच गति को प्राप्त होते हैं ( गीता १६ । १८ से २० )।
इस नीच गति में प्रधान हेतु काम, क्रोध और लोभ है। इन्हीं तीनों से आसुरी सम्पत्ति का संग्रह होता है। भगवान् ने इसीलिये इनका त्याग करनेकी आज्ञा दी है-
त्रिविधं - नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्॥
...............( गीता १६ । २१ )
काम-क्रोध तथा लोभ यह तीन प्रकार के नरक के द्वार अर्थात् सब अनर्थों के मूल और नरक की प्राप्ति में हेतु हैं, यह आत्मा का नाश करनेवाले यानी उसे अधोगति में ले जानेवाले हैं, इससे इन तीनों को त्याग देना चाहिये।
शेष आगामी पोस्ट में ..........
................००३. ०८. फाल्गुन कृ०११ सं०१९८५. कल्याण (पृ०७९३)
जीवसम्बन्धी प्रश्नोत्तर (पोस्ट 10)
(लेखक: श्री जयदयालजी गोयन्दका
अधोगति---
अधःगतिको प्राप्त होनेवाले वे जीव हैं, जो अनेक प्रकारके पापोंद्वारा अपना समस्त जीवन कलङ्कित किये हुए होते हैं, उनके अन्तकालकी वासना कर्मानुसार तमोमयी ही होती है, इससे वे नीच गतिको प्राप्त होते हैं।
जो लोग अहंकार, बल, घमण्ड, काम और क्रोधादिके परायण रहते हैं, परनिन्दा करते हैं, अपने तथा पराये सभीके शरीरमें स्थित अन्तर्यामी परमात्मासे द्वेष करते हैं। ऐसे द्वेषी, पापाचारी, क्रूरकर्मी नराधम मनुष्य सृष्टि के नियन्त्रणकर्ता भगवान् के विधान से बारम्बार आसुरी योनियों में उत्पन्न होते हैं और आगे चलकर वे उससे भी अति नीच गति को प्राप्त होते हैं ( गीता १६ । १८ से २० )।
इस नीच गति में प्रधान हेतु काम, क्रोध और लोभ है। इन्हीं तीनों से आसुरी सम्पत्ति का संग्रह होता है। भगवान् ने इसीलिये इनका त्याग करनेकी आज्ञा दी है-
त्रिविधं - नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्॥
...............( गीता १६ । २१ )
काम-क्रोध तथा लोभ यह तीन प्रकार के नरक के द्वार अर्थात् सब अनर्थों के मूल और नरक की प्राप्ति में हेतु हैं, यह आत्मा का नाश करनेवाले यानी उसे अधोगति में ले जानेवाले हैं, इससे इन तीनों को त्याग देना चाहिये।
शेष आगामी पोस्ट में ..........
................००३. ०८. फाल्गुन कृ०११ सं०१९८५. कल्याण (पृ०७९३)
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