ॐ श्रीमन्नारायणाय नम:
जीवसम्बन्धी प्रश्नोत्तर (पोस्ट 13)
(लेखक: श्री जयदयालजी गोयन्दका)
स्वप्नावस्था में जीव की स्थिति सूक्ष्म शरीर में रहती है, सूक्ष्म शरीर में सत्रह तत्त्व माने गये हैं---पांच प्राण, पांच ज्ञानेन्द्रियां, उनके कारणरूप पांच सूक्ष्म तन्मात्राएं तथा मन और बुद्धि। यह सत्रह तत्त्व हैं। कोई कोई आचार्य पांच सूक्ष्म तन्मात्राओं की जगह पांच कर्मेन्द्रियां लेते हैं। पञ्च तन्मात्रा लेनेवाले कर्मेन्द्रियों को ज्ञानेन्द्रियों के अन्तर्गत मानते हैं और पांच कर्मेन्द्रियां माननेवाले पञ्च तन्मात्राओंको उनके कार्यरूप ज्ञानेन्द्रियोंके अन्तर्गत मान लेते हैं। किसी तरह भी मानें, अधिकांश मनस्वियोंने तत्त्व सत्रह ही बतलाये हैं, कहीं इनका ही कुछ विस्तार और कहीं कुछ संकोच कर दिया गया है।
इस सूक्ष्मशरीरके अन्तर्गत तीन कोश माने गये हैं-प्राणमय, मनोमय और विज्ञानमय। सब पांच कोश हैं , जिनमें स्थूल देह तो अन्नमय कोश है। यह पांचभौतिक शरीर पांच भूतोंका भण्डार है, इसके अन्दरके सूक्ष्मशरीरमें पहला प्राणमय कोश है, जिसमें पञ्च प्राण हैं। उसके अन्दर मनोमय कोष है, इसमें मन और इन्द्रियां हैं। उसके अन्दर विज्ञानमय ( बुद्धिरूपी ) कोश है, इसमें बुद्धि और पञ्च ज्ञानेन्द्रियां हैं। यही सत्रह तत्त्व हैं। स्वप्नमें इस सूक्ष्मरुपका अभिमानी जीव ही पूर्वकालमें देखे सुने पदार्थोंको अपने अन्दर सूक्ष्मरूपसे देखता है।
जब इसकी स्थिति कारण शरीर में होती है, तब अव्याकृत माया प्रकृतिरूपी एक तत्त्व से इसका सम्बन्ध हो जाता है। इस समय सभी तत्त्व उस कारणरूप प्रकृति में लय हो जाते हैं । इसीसे तब उस जीव को किसी बात का ज्ञान नहीं रहता। इसी गाढ़ निद्रावस्था को सुषुप्ति कहते हैं।
शेष आगामी पोस्ट में ..........
................००३. ०८. फाल्गुन कृ०११ सं०१९८५. कल्याण (पृ०७९३)
जीवसम्बन्धी प्रश्नोत्तर (पोस्ट 13)
(लेखक: श्री जयदयालजी गोयन्दका)
स्वप्नावस्था में जीव की स्थिति सूक्ष्म शरीर में रहती है, सूक्ष्म शरीर में सत्रह तत्त्व माने गये हैं---पांच प्राण, पांच ज्ञानेन्द्रियां, उनके कारणरूप पांच सूक्ष्म तन्मात्राएं तथा मन और बुद्धि। यह सत्रह तत्त्व हैं। कोई कोई आचार्य पांच सूक्ष्म तन्मात्राओं की जगह पांच कर्मेन्द्रियां लेते हैं। पञ्च तन्मात्रा लेनेवाले कर्मेन्द्रियों को ज्ञानेन्द्रियों के अन्तर्गत मानते हैं और पांच कर्मेन्द्रियां माननेवाले पञ्च तन्मात्राओंको उनके कार्यरूप ज्ञानेन्द्रियोंके अन्तर्गत मान लेते हैं। किसी तरह भी मानें, अधिकांश मनस्वियोंने तत्त्व सत्रह ही बतलाये हैं, कहीं इनका ही कुछ विस्तार और कहीं कुछ संकोच कर दिया गया है।
इस सूक्ष्मशरीरके अन्तर्गत तीन कोश माने गये हैं-प्राणमय, मनोमय और विज्ञानमय। सब पांच कोश हैं , जिनमें स्थूल देह तो अन्नमय कोश है। यह पांचभौतिक शरीर पांच भूतोंका भण्डार है, इसके अन्दरके सूक्ष्मशरीरमें पहला प्राणमय कोश है, जिसमें पञ्च प्राण हैं। उसके अन्दर मनोमय कोष है, इसमें मन और इन्द्रियां हैं। उसके अन्दर विज्ञानमय ( बुद्धिरूपी ) कोश है, इसमें बुद्धि और पञ्च ज्ञानेन्द्रियां हैं। यही सत्रह तत्त्व हैं। स्वप्नमें इस सूक्ष्मरुपका अभिमानी जीव ही पूर्वकालमें देखे सुने पदार्थोंको अपने अन्दर सूक्ष्मरूपसे देखता है।
जब इसकी स्थिति कारण शरीर में होती है, तब अव्याकृत माया प्रकृतिरूपी एक तत्त्व से इसका सम्बन्ध हो जाता है। इस समय सभी तत्त्व उस कारणरूप प्रकृति में लय हो जाते हैं । इसीसे तब उस जीव को किसी बात का ज्ञान नहीं रहता। इसी गाढ़ निद्रावस्था को सुषुप्ति कहते हैं।
शेष आगामी पोस्ट में ..........
................००३. ०८. फाल्गुन कृ०११ सं०१९८५. कल्याण (पृ०७९३)
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