ॐ श्रीमन्नारायणाय नम:
जीवसम्बन्धी प्रश्नोत्तर (पोस्ट 12)
(लेखक: श्री जयदयालजी गोयन्दका)
जीव साथ क्या लाता, ले जाता है ?—
अब प्रधानतः यही बतलाना रहा कि जीव अपने साथ किन किन वस्तुओं को ले जाता है और किन को लाता है। जिस समय यह जीव जाग्रत अवस्था में रहता है, उस समय इसकी स्थिति स्थूल शरीर में रहती है। तब इसका सम्बन्ध पांच प्राणों सहित चौबीस तत्त्वों से रहता है। (आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वीका सूक्ष्म भावरूप) पांच महाभूत, अहंकार, बुद्धि, मन, त्रिगुणमयी मूल प्रकृति, कान, त्वचा, आंख,जिह्वा, नाक यह पांच ज्ञानेन्द्रियां, वाणी, हाथ, पैर, उपस्थ और गुदा यह पांच कर्मेन्द्रियाँ एवं शब्द, स्पर्श रूप,रस और गन्ध यह इन्द्रियोंके पांच विषय। ( गीता १३ । ५ ) यही चौबीस तत्त्व हैं।
इन तत्त्वोंका निरूपण करने वाले आचार्यों ने प्राणों को इसीलिये अलग नहीं बतलाया कि प्राण वायु का ही भेद है, जो पञ्च महाभूतों के अन्दर आ चुका है। योग सांख्य वेदान्त आदि शास्त्रों के अनुसार प्रधानतः तत्त्व चौबीस ही माने गये हैं। प्राणवायु के अलग मानने की आवश्यकता भी नहीं है। भेद बतलानेके लिये ही प्राण अपान समान व्यान उदान नामक वायु के पांच रूप माने गये हैं ।
शेष आगामी पोस्ट में ..........
................००३. ०८. फाल्गुन कृ०११ सं०१९८५. कल्याण (पृ०७९३)
जीवसम्बन्धी प्रश्नोत्तर (पोस्ट 12)
(लेखक: श्री जयदयालजी गोयन्दका)
जीव साथ क्या लाता, ले जाता है ?—
अब प्रधानतः यही बतलाना रहा कि जीव अपने साथ किन किन वस्तुओं को ले जाता है और किन को लाता है। जिस समय यह जीव जाग्रत अवस्था में रहता है, उस समय इसकी स्थिति स्थूल शरीर में रहती है। तब इसका सम्बन्ध पांच प्राणों सहित चौबीस तत्त्वों से रहता है। (आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वीका सूक्ष्म भावरूप) पांच महाभूत, अहंकार, बुद्धि, मन, त्रिगुणमयी मूल प्रकृति, कान, त्वचा, आंख,जिह्वा, नाक यह पांच ज्ञानेन्द्रियां, वाणी, हाथ, पैर, उपस्थ और गुदा यह पांच कर्मेन्द्रियाँ एवं शब्द, स्पर्श रूप,रस और गन्ध यह इन्द्रियोंके पांच विषय। ( गीता १३ । ५ ) यही चौबीस तत्त्व हैं।
इन तत्त्वोंका निरूपण करने वाले आचार्यों ने प्राणों को इसीलिये अलग नहीं बतलाया कि प्राण वायु का ही भेद है, जो पञ्च महाभूतों के अन्दर आ चुका है। योग सांख्य वेदान्त आदि शास्त्रों के अनुसार प्रधानतः तत्त्व चौबीस ही माने गये हैं। प्राणवायु के अलग मानने की आवश्यकता भी नहीं है। भेद बतलानेके लिये ही प्राण अपान समान व्यान उदान नामक वायु के पांच रूप माने गये हैं ।
शेष आगामी पोस्ट में ..........
................००३. ०८. फाल्गुन कृ०११ सं०१९८५. कल्याण (पृ०७९३)
जय श्री हरि
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