मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

जीवसम्बन्धी प्रश्नोत्तर (पोस्ट 19)



ॐ श्रीमन्नारायणाय नम:

जीवसम्बन्धी प्रश्नोत्तर (पोस्ट 19)
(लेखक: श्री जयदयालजी गोयन्दका)

आवागमन से छूटने का उपाय

तत्त्वज्ञान की प्राप्ति हो जानेपर जीवनमुक्त पुरुष लोकदृष्टि में जीता हुआ और कर्म करता हुआ प्रतीत होता है, परन्तु वास्तव में उसका कर्म से सम्बन्ध नहीं होता। यदि कोई कहे कि, सम्बन्ध बिना उससे कर्म कैसे होते हैं ? इसका उत्तर यह है कि वास्तव में वह तो किसी कर्म का कर्ता है नहीं, पूर्व कृत शुभाशुभ कर्मों से बने हुए प्रारब्ध का जो शेष भाग अवशिष्ट है, उसके भोग के लिये उसी के वेग से, कुलाल के न रहने पर भी कुलालचक्र की भांति कर्ता के अभाव में भी परमेश्वरकी सत्ता-स्फूर्तिसे पूर्व-स्वभावानुसार कर्म होते रहते हैं, परन्तु वे कर्तॄत्व-अहंकारसे शून्य कर्म किसी पुण्य-पाप के उत्पादक न होनेके कारण वास्तव में कर्म ही नहीं समझे जाते ( गीता १८ । १७ )।

जो लोकदृष्टि में दीखता है, वह अन्तकाल में तत्त्वज्ञान के द्वारा तीनों शरीरों का अत्यन्त अभाव होने से जब शुद्ध सच्चिदानन्दघन में तद्रूपता को प्राप्त हो जाता है ( गीता २ । ७२ ), तब उसे विदेहमुक्ति कहते हैं। जिस माया से कहीं भी नहीं आने जानेवाले निर्मल निर्गुण सच्चिदानन्दरूप आत्मा में भ्रमवश आने जाने की भावना होती है, भगवान्‌ की भक्ति के द्वारा उस माया से छूटकर इस परमपद की प्राप्ति के लिये ही हम सब को प्रयत्न करना चाहिये !

ॐ तत्सत् !

................००३. ०८. फाल्गुन कृ०११ सं०१९८५. कल्याण (पृ०७९३)




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