नमामि गंगे तव पादपंकजम् !
माता गंगा का वात्सल्य भाव
महाभारत की कथा है कि कुरुश्रेष्ठ महाभागवत भीष्म उत्तरायण की
प्रतीक्षा करते हुए कुरुक्षेत्र की रणस्थली में शरशय्या पर लेटे हुए थे | सूर्य के उत्तरायण होने पर ब्रह्मरंध्र फोडकर उनके प्राणों ने महाप्रयाण
किया | युधिष्ठिरादि करुवंशी उनका दाह-संस्कार कर उन्हें
जलांजलि देने परमपवित्र श्रीगंगा जी के तट पर गए | उस समय
उनके साथ भगवान् श्रीकृष्ण, महर्षि व्यास, देवर्षि नारद आदि मुनिगण और नगरवासी भी थे | इन सबने
जब महात्मा भीष्म को जलांजलि दी तो पुत्र स्नेह से शोकाकुला गंगाजी जल से प्रकट हो
गयीं और विलाप करते हुए कौरवों से कहने लगीं-- निष्पाप पुत्रगण ! महान व्रतधारी
भीष्म कुरुकुलवृद्ध पुरुषों का सत्कार करने वाले और अपने पिता के बड़े भक्त थे |
परशुराम जी भी अपने दिव्य अस्त्रों द्वारा जिस मेरे पराक्रमी पुत्र
को पराजित नहीं कर सके, वही महाव्रती इस समय शिखंडी के हाथों
मारा गया ! यह मेरे लिए कितने कष्ट की बात है |
तब भगवान् श्रीकृष्ण और व्यास जी ने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा –
हे सरिताओं में श्रेष्ठ देवि ! सम्पूर्ण देवताओं सहित साक्षात्
इन्द्र भी तुम्हारे पुत्र को मार नहीं सकते थे, वे तो अपनी
इच्छा से शरीर छोड़कर उत्तम-लोक को गए हैं | क्षत्रिय धर्म के
अनुसार युद्ध करते हुए वे अर्जुन के हाथ से मारे गए हैं, शिखंडी
के हाथ से नहीं |
इस प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण और व्यास जी के समझाने पर नदियों में
श्रेष्ठ गंगाजी शोक त्याग कर अपने जल में उतर गयीं |
……..{कल्याण—गंगा-अंक}
जय माँ गंगे
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