☼ श्रीदुर्गादेव्यै
नमो नम: ☼
अथ
श्रीदुर्गासप्तशती
अथ वैकृतिकं रहस्यम् (पोस्ट ०३)
अथ वैकृतिकं रहस्यम् (पोस्ट ०३)
अक्षमाला
च कमलं बाणोऽसि: कुलिशं गदा।
चक्रं
त्रिशूलं परशु: शङ्खो घण्टा च पाशक:॥11॥
शक्तिर्दण्डश्चर्म
चापं पानपात्रं कमण्डलु:।
अलंकृतभुजामेभिरायुधै:
कमलासनाम्॥12॥
सर्वदेवमयीमीशां
महालक्ष्मीमियां नृप।
पूजयेत्सर्वलोकानां
स देवानां प्रभुर्भवेत्॥13॥
गौरीदेहात्समुद्भूता
या सत्त्वैकगुणाश्रया।
साक्षात्सरस्वती
प्रोक्ता शुम्भासुरनिबर्हिणी॥14॥
दधौ
चाष्टभुजा बाणमुसले शूलचक्रभृत्।
शङ्खं
घण्टां लाङ्गलं च कार्मुकं वसुधाधिप॥15॥
एषा
सम्पूजिता भक्त्या सर्वज्ञत्वं प्रयच्छति।
निशुम्भमथिनी
देवी शुम्भासुरनिबर्हिणी॥16॥
इत्युक्तानि
स्वरूपाणि मूर्तीनां तव पार्थिव।
उपासनं
जगन्मातु: पृथगासां निशामय॥17॥
अक्षमाला, कमल, बाण, खड्ग, वज्र, गदा, चक्र, त्रिशूल, परशु, शङ्ख, घण्टा, पाश, शक्ति दण्ड,
चर्म (ढाल), धनुष, पानपात्र
और कमण्डलु- इन आयुधों से उनकी भुजाएँ विभूषित हैं। वे कमल के आसन पर विराजमान हैं,
सर्वदेवमयी हैं तथा सबकी ईश्वरी हैं। राजन्! जो इन महालक्ष्मी देवी
का पूजन करता है, वह सब लोकों तथा देवताओं का भी स्वामी होता
है॥11-13॥
जो
एकमात्र सत्त्वगुण के आश्रित हो पार्वतीजी के शरीर से प्रकट हुई थीं तथा
जिन्होंने शुम्भ नामक दैत्य का संहार किया था, वे साक्षात्
सरस्वती कही गयी हैं॥14॥
पृथ्वीपते!
उनके आठ भुजाएँ हैं तथा वे अपने हाथों में क्रमश: बाण, मुसल, शूल, चक्र, शङ्ख, घण्टा, हल एवं धनुष धारण
करती हैं॥15॥ ये सरस्वती देवी,
जो निशुम्भ का मर्दन तथा शुम्भासुर का संहार करने वाली हैं, भक्ति पूर्वक पूजित होने पर सर्वज्ञता प्रदान करती हैं॥16॥
राजन!
इस प्रकार तुमसे महाकाली आदि तीनों मूर्तियों के स्वरूप बतलाये, अब जगन्माता महालक्ष्मी की तथा इन महाकाली आदि तीनों मूर्तियों की
पृथक्-पृथक् उपासना श्रवण करो॥17॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281 से
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