||श्रीहरि||
पुत्रगीता (पोस्ट 04)
शष्याणीविचिन्वन्तमन्यत्रगतमानसम्।
वृकीवोरणमासाद्य मृत्युरादाय गच्छति॥
१३॥
अद्यैव कुरु यच्छ्यो मा त्वां कालोऽत्यगादयम्।
अकृतेष्वेव कार्येषु मृत्युर्वै सम्प्रकर्षति॥१४॥
श्वः कार्यमद्य कुर्वीत पूर्वाह्ने चापराह्निकम्।
न हि प्रतीक्षते मृत्युः कृतमस्य न वा
कृतम्॥१५॥
जैसे घास चरते हुए भेंड़े के पास अचानक व्याघ्री पहुँच जाती है और उसे
दबोचकर चल देती है, उसी प्रकार मनुष्यका मन जब दूसरी ओर लगा होता है,
उसी समय सहसा मृत्यु आ जाती है और उसे लेकर चल देती है॥ १३ ॥ इसलिये
जो कल्याणकारी कार्य हो, उसे आज ही कर डालिये। आपका यह समय हाथसे
निकल न जाय; क्योंकि सारे काम अधूरे ही पड़े रह जायँगे और मौत
आपको खींच ले जायगी॥१४॥
कल किया जानेवाला काम आज ही पूरा कर लेना चाहिये। जिसे सायंकालमें करना
है, उसे प्रातःकालमें ही कर लेना चाहिये; क्योंकि मौत यह नहीं देखती कि इसका काम अभी पूरा हुआ या नहीं॥ १५ ॥
----गीताप्रेस
गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ‘गीता-संग्रह’ पुस्तक (कोड
1958) से
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