☼ श्रीदुर्गादेव्यै
नमो नम: ☼
अथ
श्रीदुर्गासप्तशती
श्रीदुर्गामानस पूजा (पोस्ट ०८)
श्रीदुर्गामानस पूजा (पोस्ट ०८)
अमन्दतरमन्दरोन्मथितदुग्धसिन्धूद्भवं
निशाकरकरोपमं त्रिपुरसुन्दरि श्रीप्रदे ।
गृहाण मुखमीक्षतुं मुकुरबिम्बमाविद्रुमै-
र्विनिर्मितमधच्छिदे रतिकराम्बुजस्थायिनम् ॥ ८॥
पापों
का नाश करनेवाली सम्पत्तिदायिनी त्रिपुरसुन्दरि! अपने मुख की शोभा निहारने के लिये
यह दर्पण ग्रहण करो। इसे साक्षात् रति रानी अपने कर-कमलों में लेकर सेवा में
उपस्थित हैं। इस दर्पण के चारों ओर मूंगे जड़े हैं। प्रचण्ड वेग से घूमनेवाले
मन्दराचल की मथानी से जब क्षीरसमुद्र मथा गया, उस समय यह दर्पण
उसी से प्रकट हुआ था। यह चन्द्रमा की किरणों के समान उज्ज्वल है॥८॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281 से
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