☼ श्रीदुर्गादेव्यै नमो नम: ☼
अथ श्रीदुर्गासप्तशती
अथ सिद्धकुञ्जिकास्तोत्र (पोस्ट ०२)
अथ सिद्धकुञ्जिकास्तोत्र (पोस्ट ०२)
नमस्ते रूद्र रूपायै, नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभ हारिण्यै, नमस्ते महिषार्दिनि ।।1||
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च, निशुम्भासुरघातिनि || 2||
जाग्रतं हि महादेवि जपं, सिद्धं कुरूष्व मे।।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै, ह्रींकारी प्रतिपालिका||3||
क्लींकारी काल-रूपिण्यै, बीजरूपे नमोऽस्तुते।
चामुण्डा चण्डघाती च, यैकारी वरदायिनी।।4||
विच्चे चाभयदा नित्यं, नमस्ते मन्त्ररूपिणि।।5||
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी, वां वीं वूं वागधीश्वरी ।
क्रां क्रीं क्रूं
कालिकादेवि शां शीं शूं मे शुभं कुरू।।6||
हे रुद्रस्वरूपिणी ! तुम्हें नमस्कार । हे मधु दैत्यको
मारनेवाली ! तुम्हें
नमस्कार है। कैटभविनाशिनी को नमस्कार। महिषासुर को मारनेवाली देवी! तुम्हें
नमस्कार है॥१॥ शुम्भ का हनन करनेवाली और निशुम्भको मारनेवाली! तुम्हें नमस्कार
है॥२॥ हे महादेवि! मेरे जप को जाग्रत् और सिद्ध करो।'ऐंकार' के रूप में
सृष्टिस्वरूपिणी,
'ह्रीं' के रूप में
सृष्टि-पालन करनेवाली ॥ ३॥ ‘क्लीं ' के रूप में कामरूपिणी (तथा निखिल ब्रह्माण्ड)-की बीजरूपिणी
देवी ! तुम्हें नमस्कार है। चामुण्डाके रूपमें चण्डविनाशिनी और 'यैकार' के रूपमें तुम
वर देनेवाली हो॥४॥ ॐ ‘विच्चे' रूप में तुम
नित्य ही अभय देती हो। ( इस प्रकार 'ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे') तुम इस मन्त्र का स्वरूप हो॥५॥' धां धीं धूं'
के रूपमें धूर्जटी ( शिव)-की तुम पत्नी हो। 'वां वीं वूं' के रूप में तुम वाणी की अधीश्वरी हो। 'क्रां क्रीं क्रूं'
के रूप में कालिकादेवी, 'शां शीं शूं'
के रूप में मेरा कल्याण करो॥६॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281 से
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