☼ श्रीदुर्गादेव्यै नमो नम: ☼
अथ श्रीदुर्गासप्तशती
अथ सिद्धकुञ्जिकास्तोत्र (पोस्ट ०३)
अथ सिद्धकुञ्जिकास्तोत्र (पोस्ट ०३)
हुं हुं हुँकाररूपिण्यै, जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी
भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।7||
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं
दुं ऐं वीं हं क्षं ।
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय
त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा, खां खीं खूं खेचरी तथा।।8||
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं, कुरुश्व मे ।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं, कुरुश्व मे ।
इदं तु कुंजिका स्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे |
अभक्ते नैव दातव्यं, गोपितं रक्ष पार्वति।।
यस्तु कुंजिकया देवि, हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।
यस्तु कुंजिकया देवि, हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।
। इतिश्रीरुद्रयामले
गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम् ।
‘हुं हुं हुंकार'
स्वरूपिणी, ‘जं जं जं' जम्भनादिनी, 'भ्रां भ्रीं भ्रूं'
के रूप में हे कल्याणकारिणी भैरवी भवानी! तुम्हें बार-बार
प्रणाम ॥ ७॥ “अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं
धिजाग्रं इन सबको तोड़ो और दीप्त करो करो स्वाहा। 'पां पीं पूं'
के रूप में तुम पार्वती पूर्णा हो। 'खां खीं खूं' के रूप में तुम खेचरी (आकाशचारिणी) अथवा खेचरी मुद्रा हो ॥८॥ 'सां सीं सूं' स्वरूपिणी सप्तशतीदेवी के मन्त्र को मेरे लिये सिद्ध करो। यह कुञ्जिकास्तोत्र
मन्त्र को जगाने के लिये है। इसे भक्तिहीन पुरुषको नहीं देना चाहिये। हे पार्वती!
इसे गुप्त रखो। हे देवी! जो बिना कुञ्जिका
के सप्तशतीका पाठ करता है उसे उसी प्रकार सिद्धि नहीं मिलती जिस
प्रकार वनमें रोना निरर्थक होता है।
इस प्रकार श्रीरुद्रयामल के गौरीतन्त्र में
शिव-पार्वती-संवादमें सिद्धकुञ्जिकास्तोत्र सम्पूर्ण हुआ।
||ॐ तत्सत् ||
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281 से
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