☼ श्रीदुर्गादेव्यै नमो नम: ☼
श्रीअम्बाजी की आरती
जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामागौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री॥ १॥ जय अम्बे०
माँग सिंदूर विराजत टीको मृगमदको।।
उज्ज्वलसे दोउ नैना, चंद्रवदन नीको॥२॥ जय अम्बे०
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्त-पुष्प गल माला, कण्ठनपर साजै॥ ३॥ जय अम्बे०
केहरि वाहन राजत, खड्ग खपर धारी।।
सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहारी॥४॥ जय अम्बे०
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर सम राजत ज्योती॥५॥ जय अम्बे०
शुम्भ निशुम्भ विदारे, महिषासुर-घाती।
धूम्रविलोचन नैना निशिदिन मदमाती॥ ६॥ जय अम्बे०
चण्ड मुण्ड संहारे, शोणितबीज हरे।
मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥ ७॥ जय अम्बे०
ब्रह्माणी, रुद्राणी तुम
कमलारानी।
आगम-निगम-बखानी, तुम शिव पटरानी॥ ८॥ जय अम्बे०
चौंसठ योगिनि गावत, नृत्य करत भैरूँ।
बाजत ताल मृदंगा औ बाजत डमरू॥ ९॥ जय अम्बे०
तुम ही जगकी माता, तुम ही हो भरता।
भक्तनकी दुख हरता सुख सम्पति करता॥१०॥ जय अम्बे०
भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी।।
मनवाञ्छित फल पावत, सेवत नर-नारी॥११॥ जय अम्बे०
कंचन थाल विराजत अगर कपुर बाती।
(श्री) मालकेतु में राजत कोटिरतन ज्योती॥ १२॥ जय अम्बे०
(श्री) अम्बेजीकी आरति जो कोई नर गावै।।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख सम्पति पावै॥ १३॥ जय अम्बे०
................गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें