रविवार, 14 अप्रैल 2019

श्रीदेवीजी की आरती


श्रीदेवीजी की आरती


जगजननी जय! जय!! (मा! जगजननी जय! जय!!)
भयहारिणि, भवतारिणि, भवभामिनि जय! जय!!  जग०
तू ही सत-चित-सुखमय शुद्ध ब्रह्मरूपा।
सत्य सनातन सुन्दर पर-शिव सुर-भूपा॥१॥ जग०
आदि अनादि अनामय अविचल अविनाशी।।
अमल अनन्त अगोचर अज आनंदराशी॥२॥ जग०
अविकारी, अघहारी, अकल, कलाधारी।
कर्ता विधि, भर्ता हरि, हर सँहारकारी ॥ ३॥ जग०
तू विधिवधू, रमा, तू उमा, महामाया।
मूल प्रकृति विद्या तू, तू जननी, जाया॥४॥ जग०
राम, कृष्ण तू, सीता, व्रजरानी राधा।।
तू वाञ्छाकल्पद्रुम, हारिणि सब बाधा॥५॥ जग०
दश विद्या, नव दुर्गा, नानाशस्त्रकरा।।
अष्टमातृका, योगिनि, नव नव रूप धरा॥ ६॥ जग०
तू परधामनिवासिनि, महाविलासिनि तू।
तू ही श्मशानविहारिणि, ताण्डवलासिनि तू ॥ ७॥ जग०
सुर-मुनि-मोहिनि सौम्या तू शोभाऽऽधारा।
विवसन विकट-सरूपा, प्रलयमयी धारा॥ ८॥ जग०
तू ही स्नेह-सुधामयि, तू अति गरलमना।
रत्नविभूषित तू ही, तू ही अस्थि-तना॥ ९॥ जग०
मूलाधारनिवासिनि,इह-पर-सिद्धिप्रदे।
कालातीता काली, कमला तू वरदे॥१०॥ जग०
शक्ति शक्तिधर तू ही नित्य अभेदमयी।
भेदप्रदर्शिनि वाणी विमले! वेदत्रयी॥ ११॥ जग०
हम अति दीन दुखी मा! विपत-जाल घेरे।
हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे॥१२॥ जग०
निज स्वभाववश जननी! दयादृष्टि कीजै।
करुणा कर करुणामयि! चरण-शरण दीजै॥ १३॥
जगजननी जय! जय!! (मा! जगजननी जय! जय!!)

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