☼ श्रीदुर्गादेव्यै
नमो नम: ☼
अथ सप्तश्लोकी दुर्गा (हिन्दी भावार्थ)
शिवजी बोले-
हे देवि! तुम भक्तों के लिए सुलभ
हो और समस्त कर्मों का विधान करने वाली हो | कलियुग में कामनाओं की सिद्धि-हेतु
यदि कोई उपाय हो तो उसे अपनी वाणी द्वारा सम्यक् रूप से व्यक्त करो |
देवी ने कहा-
हे देव ! आपका मेरे ऊपर बहुत
स्नेह है | कलियुग में समस्त कामनाओं को सिद्ध करने वाला जो साधन है वह बतलाऊंगी, सुनो
! उसका नाम है ‘अम्बास्तुति’ |
ॐ इस दुर्गासप्तश्लोकी
स्तोत्रमन्त्रके नारायण ऋषि हैं, अनुष्टुप् छन्द है, श्रीमहाकाली,
महालक्ष्मी और महासरस्वती देवता हैं, श्रीदुर्गाकी
प्रसन्नताके लिये सप्तश्लोकी दुर्गापाठमें इसका विनियोग किया जाता है।
वे भगवती महामाया देवी ज्ञानियों
के भी चित्त को बलपूर्वक खींचकर मोह में डाल देती हैं ||१||
माँ दुर्गे ! आप स्मरण करने पर सब
प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरुषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम
कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं । दुःख, दरिद्रता
और भय हरनेवाली देवी ! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त
सबका उपकार करने के लिए सदा ही दयार्द्र रहता हो ||२|| नारायणी ! आप सब प्रकार का
मंगल प्रदान करनेवाली मंगलमयी हैं, आप ही कल्याणदायिनी शिवा
हैं । आप सब पुरुषार्थों को सिद्ध करने वाली, शरणागतवत्सला,
तीन नेत्रों वाली गौरी हैं । आपको नमस्कार है ||३|| शरणागतों,
दीनों एवं पीड़ितों की रक्षा में संलग्न रहनेवाली तथा सबकी पीड़ा दूर
करनेवाली नारायणी देवी ! आपको नमस्कार है ||४|| सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवी !
सब भयों से हमारी रक्षा कीजिये ; आपको नमस्कार है ||५|| देवि
! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हैं और कुपित होने पर मनोवांछित
सभी कामनाओं का नाश कर देती हैं । जो लोग आपकी शरण में हैं, उनपर
विपत्ति तो आती ही नहीं ; आपकी शरण में गए हुए मनुष्य दूसरों
को शरण देनेवाले हो जाते हैं ||६|| सर्वेश्वरि ! आप इसी प्रकार तीनों लोकों की
समस्त बाधाओं को शान्त करें और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो ||७||
|| इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा (हिन्दी भावार्थ) ||
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