☼ श्रीदुर्गादेव्यै नमो नम: ☼
अथ श्रीदुर्गासप्तशती
श्रीदुर्गाद्वात्रिंशत्-नाममाला (पोस्ट ०१)
एक समयकी बात है, ब्रह्मा आदि देवताओं ने पुष्प आदि विविध उपचारोंसे महेश्वरी दुर्गा का पूजन
किया। इससे प्रसन्न होकर दुर्गतिनाशिनी दुर्गा ने कहा-“देवताओ! मैं तुम्हारे पूजन से संतुष्ट हूँ, तुम्हारी जो इच्छा हो, माँगो,
मैं तुम्हें दुर्लभ-से-दुर्लभ वस्तु भी प्रदान करूंगी।' दुर्गाका यह वचन सुनकर देवता बोले ‘देवि! हमारे शत्रु महिषासुर को, जो तीनों लोकों के लिये कंटक था, आपने मार डाला, इससे सम्पूर्ण जगत् स्वस्थ एवं निर्भय हो गया। आपकी ही कृपासे हमें पुनः
अपने-अपने पदकी प्राप्ति हुई है। आप भक्तोंके लिये कल्पवृक्ष हैं, हम आपकी शरणमें आये हैं। अतः
अब हमारे मनमें कुछ भी पानेकी अभिलाषा शेष नहीं है। हमें सब कुछ मिल गया। तथापि
आपकी आज्ञा है,इसलिये हम जगत् की रक्षाके लिये आपसे कुछ पूछना चाहते हैं।
महेश्वरि! कौन-सा ऐसा उपाय है, जिससे शीघ्र
प्रसन्न होकर आप संकटमें पड़े हुए जीवकी रक्षा करती हैं। देवेश्वरि! यह बात सर्वथा
गोपनीय हो तो भी हमें अवश्य बतायें।'
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281 से
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