।। श्रीहरिः ।।
नाम-जपकी विधि (पोस्ट ०३)
(१) भगवान्के होकर भजन करें, (२) भगवान्का ध्यान करते हुए भजन करें, (३) गुप्तरीतिसे करें, (४) निरन्तर करें, क्योंकि बीचमें छूटनेसे भजन इतना बढ़िया नहीं होता । निरन्तर करनेसे एक शक्ति पैदा होती है । जैसे, बहनें-माताएँ रसोई बनाती हैं ? तो रसोई बनावें तो दस-पंद्रह मिनट बनाकर छोड़ दें, फिर घंटाभर बादमें शुरू करें । फिर थोड़ी देर बनावें, फिर घंटाभर ठहरकर करने लगें । इस प्रकार करनेसे क्या रसोई बन जायगी ? दिन बीत जायगा, पर रसोई नहीं बनेगी । लगातार किया जाय तो चट बन जायगी । ऐसे ही भगवान्का भजन लगातार हो, निरन्तर हो, छूटे नहीं, रात-दिन, सुबह-शाम कभी भी छूटे नहीं ।
नारदजी महाराज भक्ति-सूत्रमें लिखते हैं‒
‘तदर्पिताखिलाचारिता तद्विस्मरणे परमव्याकुलतेति’
सब कुछ भगवान् के अर्पण कर दे, भगवान् को भूलते ही परम व्याकुल हो जाय । जैसे मछली को जल से बाहर कर दिया जाय तो वह तड़फड़ाने लगती है । इस तरह से भगवान् की विस्मृति में हृदय में व्याकुलता हो जाय । भगवान् को भूल गये,गजब हो गया ! उसकी विस्मृति न हो । लगातार उसकी स्मृति रहे और प्रार्थना करे‒‘हे भगवान् ! मैं भूलूँ नहीं, हे ! नाथ ! मैं भूलूँ नहीं ।’ ऐसा कहता रहे और निरन्तर नाम-जप करता रहे ।
(५) इसमें एक बात और खास है‒-कामना न करे अर्थात् मैं माला फेरता हूँ, मेरी छोरी का ब्याह हो जाय । मैं नाम जपता हूँ तो धन हो जाय, मेरे व्यापार में नफा हो जाय । ऐसी कोई-सी भी कामना न करे । यह जो संसार की चीजों की कामना करना है यह तो भगवान्के नामकी बिक्री करना है । इससे भगवान् का नाम पुष्ट नहीं होता, उसमें शक्ति नहीं आती । आप खर्च करते रहते हो, मानो हीरों को पत्थरों से तौलते हो ! भगवान् का नाम कहेंगे तो धन-संग्रह हो जायगा । नहीं होगा तो क्या हो जायगा ? मेरे पोता हो जाय । अब पोता हो जाय । अब पोता हो गया तो क्या ? नहीं हो गया तो क्या ? एक विष्ठा पैदा करने की मशीन पैदा हो गयी, तो क्या हो गया ? नहीं हो जाय तो कौन-सी कमी रह गयी ? वह भी मरेगा, तुम भी मरोगे ! और क्या होगा ? पर इनके लिये भगवान् के नाम की बिक्री कर देना बहुत बड़ी भूल है । इस वास्ते ऐसी तुच्छ चीजों के लिये, जिसकी असीम, अपार कीमत है, उस भगवन्नाम की बिक्री न करें, सौदा न करें और कामना न करें । नाम महाराज से तो भगवान् की भक्ति मिले,भगवान् के चरणों में प्रेम हो जाय, भगवान् की तरफ खिंच जायँ यह माँगो । यह कामना नहीं है; क्योंकि कामना तो लेने की होती है और इसमें तो अपने-आपको भगवान् को देना है । आपका प्रेम मिले, आपकी भक्ति मिले, मैं भूलूँ ही नहीं‒-ऐसी कामना खूब करो ।
नारायण ! नारायण !!
(शेष आगामी पोस्ट में )
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की ‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे
नाम-जपकी विधि (पोस्ट ०३)
(१) भगवान्के होकर भजन करें, (२) भगवान्का ध्यान करते हुए भजन करें, (३) गुप्तरीतिसे करें, (४) निरन्तर करें, क्योंकि बीचमें छूटनेसे भजन इतना बढ़िया नहीं होता । निरन्तर करनेसे एक शक्ति पैदा होती है । जैसे, बहनें-माताएँ रसोई बनाती हैं ? तो रसोई बनावें तो दस-पंद्रह मिनट बनाकर छोड़ दें, फिर घंटाभर बादमें शुरू करें । फिर थोड़ी देर बनावें, फिर घंटाभर ठहरकर करने लगें । इस प्रकार करनेसे क्या रसोई बन जायगी ? दिन बीत जायगा, पर रसोई नहीं बनेगी । लगातार किया जाय तो चट बन जायगी । ऐसे ही भगवान्का भजन लगातार हो, निरन्तर हो, छूटे नहीं, रात-दिन, सुबह-शाम कभी भी छूटे नहीं ।
नारदजी महाराज भक्ति-सूत्रमें लिखते हैं‒
‘तदर्पिताखिलाचारिता तद्विस्मरणे परमव्याकुलतेति’
सब कुछ भगवान् के अर्पण कर दे, भगवान् को भूलते ही परम व्याकुल हो जाय । जैसे मछली को जल से बाहर कर दिया जाय तो वह तड़फड़ाने लगती है । इस तरह से भगवान् की विस्मृति में हृदय में व्याकुलता हो जाय । भगवान् को भूल गये,गजब हो गया ! उसकी विस्मृति न हो । लगातार उसकी स्मृति रहे और प्रार्थना करे‒‘हे भगवान् ! मैं भूलूँ नहीं, हे ! नाथ ! मैं भूलूँ नहीं ।’ ऐसा कहता रहे और निरन्तर नाम-जप करता रहे ।
(५) इसमें एक बात और खास है‒-कामना न करे अर्थात् मैं माला फेरता हूँ, मेरी छोरी का ब्याह हो जाय । मैं नाम जपता हूँ तो धन हो जाय, मेरे व्यापार में नफा हो जाय । ऐसी कोई-सी भी कामना न करे । यह जो संसार की चीजों की कामना करना है यह तो भगवान्के नामकी बिक्री करना है । इससे भगवान् का नाम पुष्ट नहीं होता, उसमें शक्ति नहीं आती । आप खर्च करते रहते हो, मानो हीरों को पत्थरों से तौलते हो ! भगवान् का नाम कहेंगे तो धन-संग्रह हो जायगा । नहीं होगा तो क्या हो जायगा ? मेरे पोता हो जाय । अब पोता हो जाय । अब पोता हो गया तो क्या ? नहीं हो गया तो क्या ? एक विष्ठा पैदा करने की मशीन पैदा हो गयी, तो क्या हो गया ? नहीं हो जाय तो कौन-सी कमी रह गयी ? वह भी मरेगा, तुम भी मरोगे ! और क्या होगा ? पर इनके लिये भगवान् के नाम की बिक्री कर देना बहुत बड़ी भूल है । इस वास्ते ऐसी तुच्छ चीजों के लिये, जिसकी असीम, अपार कीमत है, उस भगवन्नाम की बिक्री न करें, सौदा न करें और कामना न करें । नाम महाराज से तो भगवान् की भक्ति मिले,भगवान् के चरणों में प्रेम हो जाय, भगवान् की तरफ खिंच जायँ यह माँगो । यह कामना नहीं है; क्योंकि कामना तो लेने की होती है और इसमें तो अपने-आपको भगवान् को देना है । आपका प्रेम मिले, आपकी भक्ति मिले, मैं भूलूँ ही नहीं‒-ऐसी कामना खूब करो ।
नारायण ! नारायण !!
(शेष आगामी पोस्ट में )
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की ‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे
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