||श्रीहरि:||
दो बड़ी भूलें
श्री भगवान् का भजन करना चाहिये । एक क्षण के लिये भी भगवान् की विस्मृति नहीं होनी चाहिये । जीवन के प्रत्येक क्षण की प्रत्येक चेष्टा की धारा भगवान् की तरफ ही बहनी चाहिये । भगवान् के सिवा और कोई भी लक्ष्य नहीं होना चाहिये । तथा लक्ष्य की विस्मृति किसी समय नहीं होनी चाहिये । मनुष्य जिस काम से बार-बार तकलीफ उठाता है, बार-बार उसी को करता है-यह उसकी बड़ी भूल है । विषयों में बार-बार दुःख का अनुभव होता है; फिर भी लोग विषयों के पीछे ही भटकते हैं, सोचते हैं, मौका आनेपर भजन करेंगे । मौका आता है, बार-बार आता है । मनुष्य-जीवन भी तो एक मौका ही है, परन्तु इस मौके को हम हाथ से खो देते हैं । न करनेयोग्य कष्टदायक काम को पुनः-पुनः करना और करनेयोग्य भजन का मौका खो देना-यही दो बहुत बड़ी भूलें हैं । सावधानी के साथ सबको इन दोनों भूलों का त्याग करना चाहिये ।
'लोक-परलोक-सुधार' पुस्तक से, पुस्तक कोड- 353, पृष्ठ-संख्या- ६३, गीताप्रेस गोरखपुर
दो बड़ी भूलें
श्री भगवान् का भजन करना चाहिये । एक क्षण के लिये भी भगवान् की विस्मृति नहीं होनी चाहिये । जीवन के प्रत्येक क्षण की प्रत्येक चेष्टा की धारा भगवान् की तरफ ही बहनी चाहिये । भगवान् के सिवा और कोई भी लक्ष्य नहीं होना चाहिये । तथा लक्ष्य की विस्मृति किसी समय नहीं होनी चाहिये । मनुष्य जिस काम से बार-बार तकलीफ उठाता है, बार-बार उसी को करता है-यह उसकी बड़ी भूल है । विषयों में बार-बार दुःख का अनुभव होता है; फिर भी लोग विषयों के पीछे ही भटकते हैं, सोचते हैं, मौका आनेपर भजन करेंगे । मौका आता है, बार-बार आता है । मनुष्य-जीवन भी तो एक मौका ही है, परन्तु इस मौके को हम हाथ से खो देते हैं । न करनेयोग्य कष्टदायक काम को पुनः-पुनः करना और करनेयोग्य भजन का मौका खो देना-यही दो बहुत बड़ी भूलें हैं । सावधानी के साथ सबको इन दोनों भूलों का त्याग करना चाहिये ।
'लोक-परलोक-सुधार' पुस्तक से, पुस्तक कोड- 353, पृष्ठ-संख्या- ६३, गीताप्रेस गोरखपुर
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