मंगलवार, 2 जुलाई 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण सप्तम स्कन्ध – सातवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
सप्तम स्कन्ध – सातवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

प्रह्लादजी द्वारा माता के गर्भ में प्राप्त हुए
नारद जी के उपदेश का वर्णन

श्रीनारद उवाच
एवं दैत्यसुतैः पृष्टो महाभागवतोऽसुरः
उवाच तान्स्मयमानः स्मरन्मदनुभाषितम् ||||

श्रीप्रह्लाद उवाच
पितरि प्रस्थितेऽस्माकं तपसे मन्दराचलम्
युद्धोद्यमं परं चक्रुर्विबुधा दानवान्प्रति ||||
पिपीलिकैरहिरिव दिष्ट्या लोकोपतापनः
पापेन पापोऽभक्षीति वदन्तो वासवादयः ||||
तेषामतिबलोद्योगं निशम्यासुरयूथपाः
वध्यमानाः सुरैर्भीता दुद्रुवुः सर्वतो दिशम् ||||
कलत्रपुत्रवित्ताप्तान्गृहान्पशुपरिच्छदान्
नावेक्ष्यमाणास्त्वरिताः सर्वे प्राणपरीप्सवः ||||
व्यलुम्पन्राजशिबिरममरा जयकाङ्क्षिणः
इन्द्रस्तु राजमहिषीं मातरं मम चाग्रहीत् ||||

नारदजी कहते हैंयुधिष्ठिर ! जब दैत्यबालकों ने इस प्रकार प्रश्न किया, तब भगवान्‌ के परम प्रेमी भक्त प्रह्लाद जी को मेरी बात का स्मरण हो आया । कुछ मुसकराते हुए उन्होंने उनसे कहा ॥ १ ॥
प्रह्लादजी ने कहाजब हमारे पिता जी तपस्या करने के लिये मन्दराचलपर चले गये, तब इन्द्रादि देवताओं ने दानवों से युद्ध करने का बहुत बड़ा उद्योग किया ॥ २ ॥ वे इस प्रकार कहने लगे कि जैसे चींटियाँ साँप को चाट जाती हैं, वैसे ही लोगों को सताने वाले पापी हिरण्यकशिपु को उसका पाप ही खा गया ॥ ३ ॥ जब दैत्य सेनापतियों को देवताओं की भारी तैयारी का पता चला, तब उनका साहस जाता रहा । वे उनका सामना नहीं कर सके। मार खाकर स्त्री, पुत्र,मित्र, गुरुजन,महल,पशु और साज-सामान की कुछ भी चिन्ता न करके वे अपने प्राण बचाने के लिये बड़ी जल्दी में सब-के-सब इधर-उधर भाग गये ॥ ४-५ ॥ अपनी जीत चाहने वाले देवताओं ने राजमहल में लूट-खसोट मचा दी। यहाँतक कि इन्द्र ने राजरानी मेरी माता कयाधू को भी बन्दी बना लिया ॥ ६ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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