॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
सप्तम
स्कन्ध – पंद्रहवाँ
अध्याय..(पोस्ट०२)
गृहस्थोंके
लिये मोक्षधर्मका वर्णन
न
दद्यादामिषं श्राद्धे न चाद्याद्धर्मतत्त्ववित्
मुन्यन्नैः
स्यात्परा प्रीतिर्यथा न पशुहिंसया ॥ ७ ॥
नैतादृशः
परो धर्मो नृणां सद्धर्ममिच्छताम्
न्यासो
दण्डस्य भूतेषु मनोवाक्कायजस्य यः ॥ ८ ॥
एके
कर्ममयान्यज्ञान्ज्ञानिनो यज्ञवित्तमाः
आत्मसंयमनेऽनीहा
जुह्वति ज्ञानदीपिते ॥ ९ ॥
द्रव्ययज्ञैर्यक्ष्यमाणं
दृष्ट्वा भूतानि बिभ्यति
एष
माकरुणो हन्यादतज्ज्ञो ह्यसुतृप्ध्रुवम् ॥ १०
॥
तस्माद्दैवोपपन्नेन
मुन्यन्नेनापि धर्मवित्
सन्तुष्टोऽहरहः
कुर्यान्नित्यनैमित्तिकीः क्रियाः ॥ ११ ॥
धर्म
का मर्म जानने वाला पुरुष श्राद्ध में मांस का अर्पण न करे और न स्वयं ही उसे खाय; क्योंकि पितरोंको ऋषि-मुनियों के योग्य हविष्यान्न से जैसी प्रसन्नता होती
है, वैसी पशु-हिंसा से नहीं होती ॥ ७ ॥ जो लोग सद्धर्मपालन की
अभिलाषा रखते हैं, उनके लिये इससे बढक़र और कोई धर्म नहीं है
कि किसी भी प्राणीको मन, वाणी और शरीरसे किसी प्रकारका कष्ट
न दिया जाय ॥ ८ ॥ इसीसे कोई-कोई यज्ञ-तत्त्वको जाननेवाले ज्ञानी ज्ञानके द्वारा
प्रज्वलित आत्मसंयमरूप अग्रिमें इन कर्ममय यज्ञोंका हवन कर देते हैं और बाह्य
कर्म-कलापोंसे उपरत हो जाते हैं ॥ ९ ॥ जब कोई इन द्रव्यमय यज्ञों से यजन करना
चाहता है, तब सभी प्राणी डर जाते हैं; वे
सोचने लगते हैं कि यह अपने प्राणों का पोषण करनेवाला निर्दयी मूर्ख मुझे अवश्य मार
डालेगा ॥ १० ॥ इसलिये धर्मज्ञ मनुष्य को यही उचित है कि प्रतिदिन प्रारब्धके
द्वारा प्राप्त मुनिजनोचित हविष्यान्न से ही अपने नित्य और नैमित्तिक कर्म करे तथा
उसीसे सर्वदा सन्तुष्ट रहे ॥ ११ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
🌼🍂🌹🥀 ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏🙏
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