॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – तीसरा
अध्याय..(पोस्ट०६)
गजेन्द्र के द्वारा भगवान् की स्तुति और उसका संकट से
मुक्त होना
नमो नमस्तेऽखिलकारणाय
निष्कारणायाद्भुतकारणाय |
सर्वागमाम्नायमहार्णवाय
नमोऽपवर्गाय परायणाय ||१५||
गुणारणिच्छन्नचिदुष्मपाय
तत्क्षोभविस्फूर्जितमानसाय |
नैष्कर्म्यभावेन विवर्जितागम-
स्वयंप्रकाशाय नमस्करोमि ||१६||
आप सबके मूल कारण हैं, आपका कोई कारण नहीं है। तथा कारण होनेपर भी आपमें विकार या परिणाम नहीं होता, इसलिये आप अनोखे कारण हैं। आपको मेरा बार-बार नमस्कार !
जैसे समस्त नदी-झरने आदिका परम आश्रय समुद्र है, वैसे ही आप समस्त वेद और शास्त्रोंके परम तात्पर्य हैं। आप मोक्षस्वरूप हैं और
समस्त संत आप की ही शरण ग्रहण करते हैं; अत: आपको मैं नमस्कार करता हूँ ॥ १५ ॥ जैसे यज्ञके काष्ठ अरणिमें अग्नि गुप्त
रहती है,
वैसे ही आपने अपने ज्ञानको गुणोंकी मायासे ढक रखा है।
गुणोंमें क्षोभ होनेपर उनके द्वारा विविध प्रकारकी सृष्टि- रचना का आप संकल्प करते
हैं। जो लोग कर्म-संन्यास अथवा कर्म-समर्पणके द्वारा आत्मतत्त्वकी भावना करके
वेद-शास्त्रोंसे ऊपर उठ जाते हैं, उनके आत्माके
रूपमें आप स्वयं ही प्रकाशित हो जाते हैं। आपको मैं नमस्कार करता हूँ ॥ १६ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏
जवाब देंहटाएंOm namo bhagawate vasudevay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएं🌹🌿🌼जय श्री हरि: !!🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
Om namo bhagvate vasudevai!
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