॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – तीसरा
अध्याय..(पोस्ट०५)
गजेन्द्र के द्वारा भगवान् की स्तुति और उसका संकट से
मुक्त होना
क्षेत्रज्ञाय नमस्तुभ्यं सर्वाध्यक्षाय साक्षिणे
पुरुषायात्ममूलाय मूलप्रकृतये नमः ||१३||
सर्वेन्द्रियगुणद्रष्ट्रे सर्वप्रत्ययहेतवे
असताच्छाययोक्ताय सदाभासाय ते नमः ||१४||
आप सबके स्वामी, समस्त क्षेत्रोंके एकमात्र ज्ञाता एवं सर्वसाक्षी हैं, आपको मैं नमस्कार करता हूँ। आप स्वयं ही अपने कारण हैं। पुरुष
और मूल प्रकृतिके रूपमें भी आप ही हैं। आपको मेरा बार-बार नमस्कार ॥ १३ ॥ आप समस्त
इन्द्रिय और उनके विषयोंके द्रष्टा हैं, समस्त प्रतीतियोंके आधार हैं। अहंकार आदि छायारूप असत् वस्तुओंके द्वारा आपका
ही अस्तित्व प्रकट होता है। समस्त वस्तुओंकी सत्ताके रूपमें भी केवल आप ही भास रहे
हैं। मैं आपको नमस्कार करता हूँ ॥ १४ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
जय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएंNamaskar hai aise prabhu ko 🌷🙏🌺
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएं🌸🥀🌾जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
Om namo bhagvate vasudevai!
जवाब देंहटाएं