॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – तीसरा
अध्याय..(पोस्ट०४)
गजेन्द्र के द्वारा भगवान् की स्तुति और उसका संकट से
मुक्त होना
सत्त्वेन प्रतिलभ्याय नैष्कर्म्येण विपश्चिता
नमः कैवल्यनाथाय निर्वाणसुखसंविदे ||११||
नमः शान्ताय घोराय मूढाय गुणधर्मिणे
निर्विशेषाय साम्याय नमो ज्ञानघनाय च ||१२||
विवेकी पुरुष कर्म-संन्यास अथवा कर्म-समर्पण के द्वारा अपना
अन्त:करण शुद्ध करके जिन्हें प्राप्त करते हैं तथा जो स्वयं तो नित्यमुक्त, परमानन्द एवं ज्ञानस्वरूप हैं ही, दूसरोंको कैवल्य-मुक्ति देनेकी सामर्थ्य भी केवल उन्हीं में है—उन प्रभुको मैं नमस्कार करता हूँ ॥ ११ ॥ जो सत्त्व, रज,
तम—
इन तीन गुणोंका धर्म स्वीकार करके क्रमश: शान्त, घोर और मूढ़ अवस्था भी धारण करते हैं, उन भेदरहित समभावसे स्थित एवं ज्ञानघन प्रभुको मैं बार-बार
नमस्कार करता हूँ ॥ १२ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
जय श्री हरि
जवाब देंहटाएंजय श्रीकृष्ण। ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय। ।
जवाब देंहटाएं🌼🍂🌹जय श्री हरि: !!🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
Om namo bhagvate vasudevai!
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