बुधवार, 28 अगस्त 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – तीसरा अध्याय..(पोस्ट०४)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – तीसरा अध्याय..(पोस्ट०४)

गजेन्द्र के द्वारा भगवान्‌ की स्तुति और उसका संकट से मुक्त होना

सत्त्वेन प्रतिलभ्याय नैष्कर्म्येण विपश्चिता
नमः कैवल्यनाथाय निर्वाणसुखसंविदे ||११||
नमः शान्ताय घोराय मूढाय गुणधर्मिणे
निर्विशेषाय साम्याय नमो ज्ञानघनाय च ||१२||

विवेकी पुरुष कर्म-संन्यास अथवा कर्म-समर्पण के द्वारा अपना अन्त:करण शुद्ध करके जिन्हें प्राप्त करते हैं तथा जो स्वयं तो नित्यमुक्त, परमानन्द एवं ज्ञानस्वरूप हैं ही, दूसरोंको कैवल्य-मुक्ति देनेकी  सामर्थ्य भी केवल उन्हीं में हैउन प्रभुको मैं नमस्कार करता हूँ ॥ ११ ॥ जो सत्त्व, रज, तमइन तीन गुणोंका धर्म स्वीकार करके क्रमश: शान्त, घोर और मूढ़ अवस्था भी धारण करते हैं, उन भेदरहित समभावसे स्थित एवं ज्ञानघन प्रभुको मैं बार-बार नमस्कार करता हूँ ॥ १२ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से





4 टिप्‍पणियां:

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट०९) विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन देव...