॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – तीसरा
अध्याय..(पोस्ट०३)
गजेन्द्र के द्वारा भगवान् की स्तुति और उसका संकट से
मुक्त होना
दिदृक्षवो यस्य पदं सुमङ्गलं
विमुक्तसङ्गा मुनयः सुसाधवः
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चरन्त्यलोकव्रतमव्रणं वने
भूतात्मभूताः सुहृदः स मे गतिः ||७||
न विद्यते यस्य च जन्म कर्म
वा न नामरूपे गुणदोष एव वा
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तथापि लोकाप्ययसम्भवाय यः
स्वमायया तान्यनुकालमृच्छति ||८||
तस्मै नमः परेशाय ब्रह्मणेऽनन्तशक्तये
अरूपायोरुरूपाय नम आश्चर्यकर्मणे ||९||
नम आत्मप्रदीपाय साक्षिणे परमात्मने
नमो गिरां विदूराय मनसश्चेतसामपि ||१०||
जिनके परम मङ्गलमय स्वरूप का दर्शन करने के लिये महात्मागण
संसार की समस्त आसक्तियों का परित्याग कर देते हैं और वनमें जाकर अखण्डभावसे
ब्रह्मचर्य आदि अलौकिक व्रतोंका पालन करते हैं तथा अपने आत्माको सबके हृदयमें
विराजमान देखकर स्वाभाविक ही सबकी भलाई करते हैं— वे ही मुनियोंके सर्वस्व भगवान् मेरे सहायक हैं; वे ही मेरी गति हैं ॥ ७ ॥ न उनके जन्म-कर्म हैं और न
नाम-रूप;
फिर उनके सम्बन्धमें गुण और दोषकी तो कल्पना ही कैसे की जा
सकती है ?
फिर भी विश्वकी सृष्टि और संहार करनेके लिये समय-समयपर वे
उन्हें अपनी मायासे स्वीकार करते हैं ॥ ८ ॥ उन्हीं अनन्त शक्तिमान् सर्वैश्वर्यमय
परब्रह्म परमात्माको मैं नमस्कार करता हूँ। वे अरूप होनेपर भी बहुरूप हैं। उनके
कर्म अत्यन्त आश्चर्यमय हैं। मैं उनके चरणोंमें नमस्कार करता हूँ ॥ ९ ॥
स्वयंप्रकाश,
सबके साक्षी परमात्माको मैं नमस्कार करता हूँ। जो मन, वाणी और चित्तसे अत्यन्त दूर हैं—उन परमात्माको मैं नमस्कार करता हूँ ॥ १० ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंजय श्री हरि
जवाब देंहटाएंजय श्रीकृष्ण भगवान
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🙏🌹🙏
जवाब देंहटाएं💖🌹🌼 जय श्री हरि: !!🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण
Om namo bhagvate vasudevai!
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