॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – तीसरा
अध्याय..(पोस्ट०२)
गजेन्द्र के द्वारा भगवान् की स्तुति और उसका संकट से
मुक्त होना
कालेन पञ्चत्वमितेषु कृत्स्नशो
लोकेषु पालेषु च सर्वहेतुषु
|
तमस्तदासीद्गहनं गभीरं
यस्तस्य पारेऽभिविराजते विभुः ||५||
न यस्य देवा ऋषयः पदं विदु-
र्जन्तुः पुनः कोऽर्हति गन्तुमीरितुम्
|
यथा नटस्याकृतिभिर्विचेष्टतो
दुरत्ययानुक्रमणः स मावतु ||६||
प्रलयके समय लोक, लोकपाल और इन सबके कारण सम्पूर्ण- रूपसे नष्ट हो जाते हैं। उस समय केवल
अत्यन्त घना और गहरा अन्धकार-ही-अन्धकार रहता है। परंतु अनन्त परमात्मा उससे
सर्वथा परे विराजमान रहते हैं। वे ही प्रभु मेरी रक्षा करें ॥ ५ ॥ उनकी लीलाओंका
रहस्य जानना बहुत ही कठिन है। वे नट की भाँति अनेकों वेष धारण करते हैं। उनके
वास्तविक स्वरूपको न तो देवता जानते हैं और न ऋषि ही; फिर दूसरा ऐसा कौन प्राणी है, जो वहाँतक जा सके और उसका वर्णन कर सके ? वे प्रभु मेरी रक्षा करें ॥ ६ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
जय श्री हरि
जवाब देंहटाएंहरि: शरणम् हरि:शरणम् हरि: शरणम् 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंनारायण नारायण नारायण नारायण
जय श्री हरि
जवाब देंहटाएंOm namo bhagvate vasudevai!
जवाब देंहटाएं