॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – पहला
अध्याय..(पोस्ट०४)
मन्वन्तरोंका वर्णन
श्रीशुक उवाच
इति मन्त्रोपनिषदं व्याहरन्तं समाहितम्
दृष्ट्वासुरा यातुधाना जग्धुमभ्यद्रवन्क्षुधा ||१७||
तांस्तथावसितान्वीक्ष्य यज्ञः सर्वगतो हरिः
यामैः परिवृतो देवैर्हत्वाशासत्त्रिविष्टपम् ||१८||
स्वारोचिषो द्वितीयस्तु मनुरग्नेः सुतोऽभवत्
द्युमत्सुषेणरोचिष्मत्प्रमुखास्तस्य चात्मजाः ||१९||
तत्रेन्द्रो रोचनस्त्वासीद्देवाश्च तुषितादयः
ऊर्जस्तम्भादयः सप्त ऋषयो ब्रह्मवादिनः ||२०||
ऋषेस्तु वेदशिरसस्तुषिता नाम पत्न्यभूत्
तस्यां जज्ञे ततो देवो विभुरित्यभिविश्रुतः ||२१||
अष्टाशीतिसहस्राणि मुनयो ये धृतव्रताः
अन्वशिक्षन्व्रतं तस्य कौमारब्रह्मचारिणः ||२२||
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित् ! एक बार स्वायम्भुव मनु एकाग्रचित्त से इस मन्त्रमय उपनिषत्स्वरूप
श्रुति का पाठ कर रहे थे। उन्हें नींदमें अचेत होकर बड़बड़ाते जान भूखे असुर और
राक्षस खा डालने के लिये उनपर टूट पड़े ॥ १७ ॥ यह देखकर अन्तर्यामी भगवान्
यज्ञपुरुष अपने पुत्र याम नामक देवताओंके साथ वहाँ आये। उन्होंने उन खा डालनेके
निश्चयसे आये हुए असुरोंका संहार कर डाला और फिर वे इन्द्रके पदपर प्रतिष्ठित होकर
स्वर्गका शासन करने लगे ॥ १८ ॥
परीक्षित् ! दूसरे मनु हुए स्वारोचिष। वे अग्नि के पुत्र
थे। उनके पुत्रोंके नाम थे—द्युमान्, सुषेण और
रोचिष्मान् आदि ॥ १९ ॥ उस मन्वन्तरमें इन्द्रका नाम था रोचन, प्रधान देवगण थे तुषित आदि। ऊर्जस्तम्भ आदि वेदवादीगण
सप्तर्षि थे ॥ २० ॥ उस मन्वन्तरमें वेदशिरा नामके ऋषिकी पत्नी तुषिता थीं। उनके
गर्भसे भगवान्ने अवतार ग्रहण किया और विभु नामसे प्रसिद्ध हुए ॥ २१ ॥ वे आजीवन
नैष्ठिक ब्रह्मचारी रहे। उन्हींके आचरणसे शिक्षा ग्रहण करके अठासी हजार व्रतनिष्ठ
ऋषियोंने भी ब्रह्मचर्यव्रतका पालन किया ॥ २२ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
जय श्री सीताराम जय हो प्रभु जी
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएं🌹🍂🌼जय श्री हरि: 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय