॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – तीसरा
अध्याय..(पोस्ट१२)
गजेन्द्र के द्वारा भगवान् की स्तुति और उसका संकट से
मुक्त होना
श्रीशुक उवाच
एवं गजेन्द्रमुपवर्णितनिर्विशेषं
ब्रह्मादयो विविधलिङ्गभिदाभिमानाः|
नैते यदोपससृपुर्निखिलात्मकत्वात्
तत्राखिलामरमयो हरिराविरासीत् ||३०||
तं तद्वदार्तमुपलभ्य जगन्निवासः
स्तोत्रं निशम्य दिविजैः सह संस्तुवद्भिः|
छन्दोमयेन गरुडेन समुह्यमानश्
चक्रायुधोऽभ्यगमदाशु यतो गजेन्द्र:
||३१||
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित् ! गजेन्द्र ने बिना किसी भेदभाव के निर्विशेषरूप से भगवान् की
स्तुति की थी,
इसलिये भिन्न-भिन्न नाम और रूपको अपना स्वरूप माननेवाले
ब्रह्मा आदि देवता उसकी रक्षा करनेके लिये नहीं आये। उस समय सर्वात्मा होनेके कारण
सर्वदेवस्वरूप स्वयं भगवान् श्रीहरि प्रकट हो गये ॥ ३० ॥ विश्वके एकमात्र आधार
भगवान् ने देखा कि गजेन्द्र अत्यन्त पीडि़त हो रहा है। अत: उसकी स्तुति सुनकर
वेदमय गरुड़पर सवार हो चक्रधारी भगवान् बड़ी शीघ्रतासे वहाँके लिये चल पड़े, जहाँ गजेन्द्र अत्यन्त संकटमें पड़ा हुआ था। उनके साथ
स्तुति करते हुए देवता भी आये ॥ ३१ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
जवाब देंहटाएंOm namo bhagawate vasudevay
जवाब देंहटाएंश्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
जवाब देंहटाएंहे नाथ नारायण वासुदेव
🌸💖🌹जय श्री हरि: !!🙏🙏
नारायण नारायण नारायण नारायण
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🌺🙏
जवाब देंहटाएंOm namo bhagvate vasudevai!
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