॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – सातवाँ अध्याय..(पोस्ट०९)
समुद्रमन्थन का आरम्भ और भगवान् शङ्कर का विषपान
अग्निर्मुखं तेऽखिलदेवतात्मा
क्षितिं विदुर्लोकभवाङ्घ्रिपङ्कजम्
कालं गतिं तेऽखिलदेवतात्मनो
दिशश्च कर्णौ रसनं जलेशम् ॥ २६ ॥
नाभिर्नभस्ते श्वसनं नभस्वान्-
सूर्यश्च चक्षूंषि जलं स्म रेतः
परावरात्माश्रयणं तवात्मा
सोमो मनो द्यौर्भगवन्शिरस्ते ॥ २७ ॥
सर्वदेवस्वरूप अग्नि आपका मुख है। तीनों लोकोंके अभ्युदय
करनेवाले शङ्कर ! यह पृथ्वी आपका चरणकमल है। आप अखिल देवस्वरूप हैं। यह काल आपकी
गति है,
दिशाएँ कान हैं और वरुण रसनेन्द्रिय है ॥ २६ ॥ आकाश नाभि है, वायु श्वास है, सूर्य नेत्र हैं और जल वीर्य है। आपका अहंकार नीचे-ऊँचे सभी जीवोंका आश्रय है।
चन्द्रमा मन है और प्रभो ! स्वर्ग आपका सिर है ॥ २७ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
जय श्री सीताराम जय हो प्रभु जय हो
जवाब देंहटाएंOm namo bhagawate vasudevay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएं💐🔱🌸🥀जय हो नीलकंठ महादेव की 🙏 ॐ नमः शिवाय
जवाब देंहटाएं🌼🌿जय श्री हरि: !!🙏🙏🙏
Jay shree Krishna
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