॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – सातवाँ अध्याय..(पोस्ट०८)
समुद्रमन्थन का आरम्भ और भगवान् शङ्कर का विषपान
त्वं ब्रह्म परमं गुह्यं सदसद्भावभावनम्
नानाशक्तिभिराभातस्त्वमात्मा जगदीश्वरः ॥ २४ ॥
त्वं शब्दयोनिर्जगदादिरात्मा
प्राणेन्द्रि यद्र व्यगुणः स्वभावः
कालः क्रतुः सत्यमृतं च धर्म-
स्त्वय्यक्षरं यत्त्रिवृदामनन्ति ॥ २५ ॥
आप स्वयंप्रकाश हैं। इसका कारण यह है कि आप परम रहस्यमय
ब्रह्मतत्त्व हैं। जितने भी देवता, मनुष्य,
पशु,
पक्षी आदि सत् अथवा असत् चराचर प्राणी हैं—उनको जीवनदान देनेवाले आप ही हैं। आपके अतिरिक्त सृष्टि भी
और कुछ नहीं है। क्योंकि आप आत्मा हैं। अनेक शक्तियोंके द्वारा आप ही जगत् रूप में भी प्रतीत हो रहे हैं। क्योंकि आप
ईश्वर हैं,
सर्वसमर्थ हैं ॥ २४ ॥ समस्त वेद आपसे ही प्रकट हुए हैं।
इसलिये आप समस्त ज्ञानोंके मूल स्रोत स्वत:सिद्ध ज्ञान हैं। आप ही जगत्के आदिकारण
महत्तत्त्व और त्रिविध अहंकार हैं एवं आप ही प्राण, इन्द्रिय,
पञ्चमहाभूत तथा शब्दादि विषयोंके भिन्न-भिन्न स्वभाव और
उनके मूल कारण हैं। आप स्वयं ही प्राणियोंकी वृद्धि और ह्रास करनेवाले काल हैं, उनका कल्याण करनेवाले यज्ञ हैं एवं सत्य और मधुर वाणी हैं।
धर्म भी आपका ही स्वरूप है। आप ही ‘अ,
उ,
म्’ इन तीनों अक्षरोंसे युक्त प्रणव हैं अथवा त्रिगुणात्मिका
प्रकृति हैं—ऐसा वेदवादी महात्मा कहते हैं ॥ २५ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्ण 💐🙏🏻💐
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएंOm namo narayanay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएं🌹🍂🌸जय श्री हरि: 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंहे सर्वेश्वर हे योगेश्वर हे सर्वत्र व्याप्त परम् ब्रह्म परमेश्वर तुम्हें सहस्त्रों सहस्त्रों कोटिश: वंदन 🙏🙏🙏