॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – सातवाँ अध्याय..(पोस्ट०७)
समुद्रमन्थन का आरम्भ और भगवान् शङ्कर का विषपान
श्रीप्रजापतय ऊचुः
देवदेव महादेव भूतात्मन्भूतभावन
त्राहि नः शरणापन्नांस्त्रैलोक्यदहनाद्विषात् ॥ २१ ॥
त्वमेकः सर्वजगत ईश्वरो बन्धमोक्षयोः
तं त्वामर्चन्ति कुशलाः प्रपन्नार्तिहरं गुरुम् ॥ २२ ॥
गुणमय्या स्वशक्त्यास्य सर्गस्थित्यप्ययान्विभो
धत्से यदा स्वदृग्भूमन्ब्रह्मविष्णुशिवाभिधाम् ॥ २३ ॥
प्रजापतियोंने भगवान् शङ्करकी स्तुति की—देवताओंके आराध्यदेव महादेव ! आप समस्त प्राणियोंके आत्मा
और उनके जीवनदाता हैं। हमलोग आपकी शरणमें आये हैं। त्रिलोकीको भस्म करनेवाले इस
उग्र विषसे आप हमारी रक्षा कीजिये ॥ २१ ॥ सारे जगत् को बाँधने और मुक्त करनेमें
एकमात्र आप ही समर्थ हैं। इसलिये विवेकी पुरुष आपकी ही आराधना करते हैं। क्योंकि
आप शरणागतकी पीड़ा नष्ट करनेवाले एवं जगद्गुरु हैं ॥ २२ ॥ प्रभो ! अपनी गुणमयी
शक्तिसे इस जगत्की सृष्टि,
स्थिति और प्रलय करनेके लिये आप अनन्त, एकरस होनेपर भी ब्रह्मा, विष्णु,
शिव आदि नाम धारण कर लेते हैं ॥ २३ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
🌹🔱🍂 ॐ नमः शिवाय 🙏🙏हर हर महादेव 🙏🙏🙏
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