॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – सातवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)
समुद्रमन्थन का आरम्भ और भगवान् शङ्कर का विषपान
निर्मथ्यमानादुदधेरभूद्विषं
महोल्बणं हालहलाह्वमग्रतः
सम्भ्रान्तमीनोन्मकराहिकच्छपात्-
तिमिद्विपग्राहतिमिङ्गिलाकुलात् ॥ १८ ॥
तदुग्रवेगं दिशि दिश्युपर्यधो
विसर्पदुत्सर्पदसह्यमप्रति
भीताः प्रजा दुद्रुवुरङ्ग सेश्वरा
अरक्ष्यमाणाः शरणं सदाशिवम् ॥ १९ ॥
विलोक्य तं देववरं त्रिलोक्या
भवाय देव्याभिमतं मुनीनाम्
आसीनमद्रा वपवर्गहेतो-
स्तपो जुषाणं स्तुतिभिः प्रणेमुः ॥ २० ॥
जब अजित भगवान् ने इस प्रकार समुद्र-मन्थन किया, तब समुद्र में बड़ी खलबली मच गयी। मछली, मगर,
साँप और कछुए भयभीत होकर ऊपर आ गये और इधर-उधर भागने लगे।
तिमि-तिमिङ्गिल आदि मच्छ,
समुद्री हाथी और ग्राह व्याकुल हो गये। उसी समय पहले-पहल
हालाहल नामका अत्यन्त उग्र विष निकला ॥ १८ ॥ वह अत्यन्त उग्र विष दिशा-विदिशामें, ऊपर-नीचे सर्वत्र उडऩे और फैलने लगा। इस असह्य विषसे बचनेका
कोई उपाय भी तो न था। भयभीत होकर सम्पूर्ण प्रजा और प्रजापति किसीके द्वारा त्राण
न मिलनेपर भगवान् सदाशिवकी शरणमें गये ॥ १९ ॥ भगवान् शङ्कर सतीजीके साथ कैलास
पर्वतपर विराजमान थे। बड़े-बड़े ऋषि-मुनि उनकी सेवा कर रहे थे। वे वहाँ तीनों
लोकोंके अभ्युदय और मोक्षके लिये तपस्या कर रहे थे। प्रजापतियोंने उनका दर्शन करके
उनकी स्तुति करते हुए उन्हें प्रणाम किया ॥ २० ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
🚩🚩🚩🕉️ हर हर श्री महादेव शम्भो 🙏🙏🙏🕉️ श्री नीलकंठाय नमः 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्ण 💐🙏🏻💐
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्ण 💐🙏🏻💐
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्ण 💐🙏🏻💐
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्ण 💐🙏🏻💐
जवाब देंहटाएंजय श्री हरि जय हो प्रभु जय हो
जवाब देंहटाएंॐ नमः शिवाय,ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🌺🙏
जवाब देंहटाएं🍂💖🌼जय श्री हरि: !!🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण
जय हो मेरे प्रभु हरि: हर की
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏
जवाब देंहटाएंOm namo narayanay 🙏🙏🙏
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