॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)
देवासुर-संग्राम
श्रीशुक उवाच
इति दानवदैतेया नाविन्दन्नमृतं नृप
युक्ताः कर्मणि यत्ताश्च वासुदेवपराङ्मुखाः ॥ १ ॥
साधयित्वामृतं राजन्पाययित्वा स्वकान्सुरान्
पश्यतां सर्वभूतानां ययौ गरुडवाहनः ॥ २ ॥
सपत्नानां परामृद्धिं दृष्ट्वा ते दितिनन्दनाः
अमृष्यमाणा उत्पेतुर्देवान्प्रत्युद्यतायुधाः ॥ ३ ॥
ततः सुरगणाः सर्वे सुधया पीतयैधिताः
प्रतिसंयुयुधुः शस्त्रैर्नारायणपदाश्रयाः ॥ ४ ॥
तत्र दैवासुरो नाम रणः परमदारुणः
रोधस्युदन्वतो राजंस्तुमुलो रोमहर्षणः ॥ ५ ॥
तत्रान्योन्यं सपत्नास्ते संरब्धमनसो रणे
समासाद्यासिभिर्बाणैर्निजघ्नुर्विविधायुधैः ॥ ६ ॥
शङ्खतूर्यमृदङ्गानां भेरीडमरिणां महान्
हस्त्यश्वरथपत्तीनां नदतां निस्वनोऽभवत् ॥ ७ ॥
रथिनो रथिभिस्तत्र पत्तिभिः सह पत्तयः
हया हयैरिभाश्चेभैः समसज्जन्त संयुगे ॥ ८ ॥
उष्ट्रैः केचिदिभैः केचिदपरे युयुधुः खरैः
केचिद्गौरमृगैर्ॠक्षैर्द्वीपिभिर्हरिभिर्भटाः ॥ ९ ॥
गृध्रैः कङ्कैर्बकैरन्ये श्येनभासैस्तिमिङ्गिलैः
शरभैर्महिषैः खड्गैर्गोवृषैर्गवयारुणैः ॥ १० ॥
शिवाभिराखुभिः केचित्कृकलासैः शशैर्नरैः
बस्तैरेके कृष्णसारैर्हंसैरन्ये च सूकरैः ॥ ११ ॥
अन्ये जलस्थलखगैः सत्त्वैर्विकृतविग्रहैः
सेनयोरुभयो राजन्विविशुस्तेऽग्रतोऽग्रतः ॥ १२ ॥
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित् ! यद्यपि दानवों और दैत्यों ने बड़ी सावधानी से समुद्रमन्थन की
चेष्टा की थी,
फिर भी भगवान् से विमुख होने के कारण उन्हें अमृतकी
प्राप्ति नहीं हुई ॥ १ ॥ राजन् ! भगवान्ने समुद्रको मथकर अमृत निकाला और अपने
निजजन देवताओंको पिला दिया। फिर सबके देखते-देखते वे गरुड़पर सवार हुए और वहाँसे
चले गये ॥ २ ॥ जब दैत्योंने देखा कि हमारे शत्रुओंको तो बड़ी सफलता मिली, तब वे उनकी बढ़ती सह न सके। उन्होंने तुरंत अपने हथियार उठाये
और देवताओंपर धावा बोल दिया ॥ ३ ॥ इधर देवताओंने एक तो अमृत पीकर विशेष शक्ति
प्राप्त कर ली थी और दूसरे उन्हें भगवान् के चरणकमलोंका आश्रय था ही। बस, वे भी अपने अस्त्र-शस्त्रोंसे सुसज्जित हो दैत्योंसे भिड़
गये ॥ ४ ॥ परीक्षित् ! क्षीरसागरके तटपर बड़ा ही रोमाञ्चकारी और अत्यन्त भयङ्कर
संग्राम हुआ। देवता और दैत्योंकी वह घमासान लड़ाई ही ‘देवासुर-संग्राम’ के नामसे कही जाती है ॥ ५ ॥ दोनों ही एक-दूसरेके प्रबल शत्रु हो रहे थे, दोनों ही क्रोधसे भरे हुए थे। एक-दूसरेको आमने-सामने पाकर
तलवार,
बाण और अन्य अनेकानेक अस्त्र-शस्त्रोंसे परस्पर चोट
पहुँचाने लगे ॥ ६ ॥ उस समय लड़ाईमें शङ्ख, तुरही,
मृदङ्ग, नगारे और डमरू
बड़े जोरसे बजने लगे;
हाथियोंकी चिग्घाड़, घोड़ोंकी हिनहिनाहट,
रथोंकी घरघराहट और पैदल सेनाकी चिल्लाहट से बड़ा कोलाहल मच
गया ॥ ७ ॥ रणभूमिमें रथियोंके साथ रथी, पैदलके साथ पैदल,
घुड़सवारों के साथ घुड़सवार एवं हाथीवालोंके साथ हाथीवाले
भिड़ गये ॥ ८ ॥ उनमेंसे कोई-कोई वीर ऊँटोंपर, हाथियोंपर और गधोंपर चढक़र लड़ रहे थे तो कोई-कोई गौरमृग, भालू, बाघ और
सिंहोंपर ॥ ९ ॥ कोई-कोई सैनिक गिद्ध, कङ्क,
बगुले, बाज और भास
पक्षियोंपर चढ़े हुए थे तो बहुत-से तिमिङ्गिल मच्छ, शरभ,
भैंसे, गैंड़े, बैल,
नीलगाय और जंगली साँड़ों पर सवार थे ॥ १० ॥ किसी-किसी ने
सियारिन,
चूहे, गिरगिट और
खरहों पर ही सवारी कर ली थी तो बहुत-से मनुष्य, बकरे,
कृष्णसार मृग, हंस और सूअरों पर चढ़े थे ॥ ११ ॥ इस प्रकार जल, स्थल एवं आकाश में रहनेवाले तथा देखने में भयङ्कर शरीरवाले बहुत-से
प्राणियोंपर चढक़र कई दैत्य दोनों सेनाओं में आगे-आगे घुस गये ॥ १२ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏
जवाब देंहटाएंOm namo narayanay 🙏🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंओम नमो भगवते वासुदेवाय नम:
जवाब देंहटाएं🌸🌿🥀जय श्री हरि: 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण