सोमवार, 30 सितंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

देवासुर-संग्राम

श्रीशुक उवाच
इति दानवदैतेया नाविन्दन्नमृतं नृप
युक्ताः कर्मणि यत्ताश्च वासुदेवपराङ्मुखाः ॥ १ ॥
साधयित्वामृतं राजन्पाययित्वा स्वकान्सुरान्
पश्यतां सर्वभूतानां ययौ गरुडवाहनः ॥ २ ॥
सपत्नानां परामृद्धिं दृष्ट्वा ते दितिनन्दनाः
अमृष्यमाणा उत्पेतुर्देवान्प्रत्युद्यतायुधाः ॥ ३ ॥
ततः सुरगणाः सर्वे सुधया पीतयैधिताः
प्रतिसंयुयुधुः शस्त्रैर्नारायणपदाश्रयाः ॥ ४ ॥
तत्र दैवासुरो नाम रणः परमदारुणः
रोधस्युदन्वतो राजंस्तुमुलो रोमहर्षणः ॥ ५ ॥
तत्रान्योन्यं सपत्नास्ते संरब्धमनसो रणे
समासाद्यासिभिर्बाणैर्निजघ्नुर्विविधायुधैः ॥ ६ ॥
शङ्खतूर्यमृदङ्गानां भेरीडमरिणां महान्
हस्त्यश्वरथपत्तीनां नदतां निस्वनोऽभवत् ॥ ७ ॥
रथिनो रथिभिस्तत्र पत्तिभिः सह पत्तयः
हया हयैरिभाश्चेभैः समसज्जन्त संयुगे ॥ ८ ॥
उष्ट्रैः केचिदिभैः केचिदपरे युयुधुः खरैः
केचिद्गौरमृगैर्ॠक्षैर्द्वीपिभिर्हरिभिर्भटाः ॥ ९ ॥
गृध्रैः कङ्कैर्बकैरन्ये श्येनभासैस्तिमिङ्गिलैः
शरभैर्महिषैः खड्गैर्गोवृषैर्गवयारुणैः ॥ १० ॥
शिवाभिराखुभिः केचित्कृकलासैः शशैर्नरैः
बस्तैरेके कृष्णसारैर्हंसैरन्ये च सूकरैः ॥ ११ ॥
अन्ये जलस्थलखगैः सत्त्वैर्विकृतविग्रहैः
सेनयोरुभयो राजन्विविशुस्तेऽग्रतोऽग्रतः ॥ १२ ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैंपरीक्षित्‌ ! यद्यपि दानवों और दैत्यों ने बड़ी सावधानी से समुद्रमन्थन की चेष्टा की थी, फिर भी भगवान्‌ से विमुख होने के कारण उन्हें अमृतकी प्राप्ति नहीं हुई ॥ १ ॥ राजन् ! भगवान्‌ने समुद्रको मथकर अमृत निकाला और अपने निजजन देवताओंको पिला दिया। फिर सबके देखते-देखते वे गरुड़पर सवार हुए और वहाँसे चले गये ॥ २ ॥ जब दैत्योंने देखा कि हमारे शत्रुओंको तो बड़ी सफलता मिली, तब वे उनकी बढ़ती सह न सके। उन्होंने तुरंत अपने हथियार उठाये और देवताओंपर धावा बोल दिया ॥ ३ ॥ इधर देवताओंने एक तो अमृत पीकर विशेष शक्ति प्राप्त कर ली थी और दूसरे उन्हें भगवान्‌ के चरणकमलोंका आश्रय था ही। बस, वे भी अपने अस्त्र-शस्त्रोंसे सुसज्जित हो दैत्योंसे भिड़ गये ॥ ४ ॥ परीक्षित्‌ ! क्षीरसागरके तटपर बड़ा ही रोमाञ्चकारी और अत्यन्त भयङ्कर संग्राम हुआ। देवता और दैत्योंकी वह घमासान लड़ाई ही देवासुर-संग्रामके नामसे कही जाती है ॥ ५ ॥ दोनों ही एक-दूसरेके प्रबल शत्रु हो रहे थे, दोनों ही क्रोधसे भरे हुए थे। एक-दूसरेको आमने-सामने पाकर तलवार, बाण और अन्य अनेकानेक अस्त्र-शस्त्रोंसे परस्पर चोट पहुँचाने लगे ॥ ६ ॥ उस समय लड़ाईमें शङ्ख, तुरही, मृदङ्ग, नगारे और डमरू बड़े जोरसे बजने लगे; हाथियोंकी चिग्घाड़, घोड़ोंकी हिनहिनाहट, रथोंकी घरघराहट और पैदल सेनाकी चिल्लाहट से बड़ा कोलाहल मच गया ॥ ७ ॥ रणभूमिमें रथियोंके साथ रथी, पैदलके साथ पैदल, घुड़सवारों के साथ घुड़सवार एवं हाथीवालोंके साथ हाथीवाले भिड़ गये ॥ ८ ॥ उनमेंसे कोई-कोई वीर ऊँटोंपर, हाथियोंपर और गधोंपर चढक़र लड़ रहे थे तो कोई-कोई गौरमृग, भालू, बाघ और सिंहोंपर ॥ ९ ॥ कोई-कोई सैनिक गिद्ध, कङ्क, बगुले, बाज और भास पक्षियोंपर चढ़े हुए थे तो बहुत-से तिमिङ्गिल मच्छ, शरभ, भैंसे, गैंड़े, बैल, नीलगाय और जंगली साँड़ों पर सवार थे ॥ १० ॥ किसी-किसी ने सियारिन, चूहे, गिरगिट और खरहों पर ही सवारी कर ली थी तो बहुत-से मनुष्य, बकरे, कृष्णसार मृग, हंस और सूअरों पर चढ़े थे ॥ ११ ॥ इस प्रकार जल, स्थल एवं आकाश में रहनेवाले तथा देखने में भयङ्कर शरीरवाले बहुत-से प्राणियोंपर चढक़र कई दैत्य दोनों सेनाओं में आगे-आगे घुस गये ॥ १२ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से





6 टिप्‍पणियां:

  1. जय श्री सीताराम

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  2. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏

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  3. ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम:

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  4. 🌸🌿🥀जय श्री हरि: 🙏🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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