रविवार, 29 सितंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – नवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – नवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

मोहिनीरूप से भगवान्‌ के द्वारा अमृत बाँटा जाना

एवं सुरासुरगणाः समदेशकाल
     हेत्वर्थकर्ममतयोऽपि फले विकल्पाः ।
तत्रामृतं सुरगणाः फलमञ्जसापुः
     यत्पादपंकजरजःश्रयणान्न दैत्याः ॥ २८ ॥
यद् युज्यतेऽसुवसुकर्ममनोवचोभिः
     देहात्मजादिषु नृभिस्तदसत्पृथक्त्वात् ।
तैरेव सद्‍भवति यत् क्रियतेऽपृथक्त्वात्
     सर्वस्य तद्‍भवति मूलनिषेचनं यत् ॥ २९ ॥

परीक्षित्‌ ! देखोदेवता और दैत्य दोनोंने एक ही समय एक स्थानपर एक प्रयोजन तथा एक वस्तुके लिये एक विचारसे एक ही कर्म किया था, परंतु फलमें बड़ा भेद हो गया। उनमेंसे देवताओंने बड़ी सुगमतासे अपने परिश्रमका फलअमृत प्राप्त कर लिया, क्योंकि उन्होंने भगवान्‌ के चरणकमलोंकी रजका आश्रय लिया था। परंतु उससे विमुख होनेके कारण परिश्रम करनेपर भी असुरगण अमृतसे वञ्चित ही रहे ॥ २८ ॥ मनुष्य अपने प्राण, धन, कर्म, मन और वाणी आदिसे शरीर एवं पुत्र आदिके लिये जो कुछ करता हैवह व्यर्थ ही होता है; क्योंकि उसके मूलमें भेदबुद्धि बनी रहती है। परंतु उन्हीं प्राण आदि वस्तुओंके द्वारा भगवान्‌के लिये जो कुछ किया जाता है, वह सब भेदभावसे रहित होनेके कारण अपने शरीर, पुत्र और समस्त संसारके लिये सफल हो जाता है। जैसे वृक्षकी जड़में पानी देनेसे उसका तना, टहनियाँ और पत्तेसब-के-सब सिंच जाते हैं, वैसे ही भगवान्‌ के लिये कर्म करने से वे सब के लिये हो जाते हैं ॥ २९ ॥

इति श्रीमद्‌भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
अष्टमस्कन्धे अमृतमथने नवमोऽध्यायः ॥ ९ ॥

हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से



8 टिप्‍पणियां:

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

    जवाब देंहटाएं
  2. जय श्री सीताराम

    जवाब देंहटाएं
  3. Om namo bhagawate vasudevay 🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🌺🙏

    जवाब देंहटाएं
  5. 🌷💖🥀जय श्री हरि: 🙏🙏🙏
    हरि:शरणम् हरि:शरणम् हरि:शरणम्
    नारायण नारायण नारायण नारायण

    जवाब देंहटाएं

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट१२)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट१२) विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन तत्...