॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – नवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)
मोहिनीरूप से भगवान् के द्वारा अमृत बाँटा जाना
एवं सुरासुरगणाः समदेशकाल
हेत्वर्थकर्ममतयोऽपि फले विकल्पाः ।
तत्रामृतं सुरगणाः फलमञ्जसापुः
यत्पादपंकजरजःश्रयणान्न दैत्याः ॥ २८ ॥
यद् युज्यतेऽसुवसुकर्ममनोवचोभिः
देहात्मजादिषु
नृभिस्तदसत्पृथक्त्वात् ।
तैरेव सद्भवति यत् क्रियतेऽपृथक्त्वात्
सर्वस्य तद्भवति
मूलनिषेचनं यत् ॥ २९ ॥
परीक्षित् ! देखो—देवता और दैत्य दोनोंने एक ही समय एक स्थानपर एक प्रयोजन तथा एक वस्तुके लिये
एक विचारसे एक ही कर्म किया था, परंतु फलमें
बड़ा भेद हो गया। उनमेंसे देवताओंने बड़ी सुगमतासे अपने परिश्रमका फल—अमृत प्राप्त कर लिया, क्योंकि उन्होंने भगवान् के चरणकमलोंकी रजका आश्रय लिया था। परंतु उससे विमुख
होनेके कारण परिश्रम करनेपर भी असुरगण अमृतसे वञ्चित ही रहे ॥ २८ ॥ मनुष्य अपने
प्राण,
धन,
कर्म, मन और वाणी
आदिसे शरीर एवं पुत्र आदिके लिये जो कुछ करता है—वह व्यर्थ ही होता है;
क्योंकि उसके मूलमें भेदबुद्धि बनी रहती है। परंतु उन्हीं
प्राण आदि वस्तुओंके द्वारा भगवान्के लिये जो कुछ किया जाता है, वह सब भेदभावसे रहित होनेके कारण अपने शरीर, पुत्र और समस्त संसारके लिये सफल हो जाता है। जैसे वृक्षकी
जड़में पानी देनेसे उसका तना, टहनियाँ और
पत्ते—सब-के-सब सिंच जाते हैं, वैसे ही भगवान् के लिये कर्म करने से वे सब के लिये हो जाते हैं ॥ २९ ॥
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
अष्टमस्कन्धे अमृतमथने नवमोऽध्यायः ॥ ९ ॥
हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंजय श्री हरि
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएंOm namo bhagawate vasudevay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंJay shree Krishna
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹🌺🙏
जवाब देंहटाएं🌷💖🥀जय श्री हरि: 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंहरि:शरणम् हरि:शरणम् हरि:शरणम्
नारायण नारायण नारायण नारायण