॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – नवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)
मोहिनीरूप से भगवान् के द्वारा अमृत बाँटा जाना
देवलिङ्गप्रतिच्छन्नः स्वर्भानुर्देवसंसदि ।
प्रविष्टः सोममपिबत् चन्द्रार्काभ्यां च सूचितः ॥ २४ ॥
चक्रेण क्षुरधारेण जहार पिबतः शिरः ।
हरिस्तस्य कबन्धस्तु सुधयाप्लावितोऽपतत् ॥ २५ ॥
शिरस्त्वमरतां नीतं अजो ग्रहमचीकॢपत् ।
यस्तु पर्वणि चन्द्रार्कौ अभिधावति वैरधीः ॥ २६ ॥
पीतप्रायेऽमृते देवैः भगवान् लोकभावनः ।
पश्यतां असुरेन्द्राणां स्वं रूपं जगृहे हरिः ॥ २७ ॥
जिस समय भगवान् देवताओंको अमृत पिला रहे थे, उसी समय राहु दैत्य देवताओंका वेष बनाकर उनके बीचमें आ बैठा
और देवताओंके साथ उसने भी अमृत पी लिया। परंतु तत्क्षण चन्द्रमा और सूर्यने उसकी
पोल खोल दी ॥ २४ ॥ अमृत पिलाते-पिलाते ही भगवान्ने अपने तीखी धारवाले चक्रसे उसका
सिर काट डाला। अमृतका संसर्ग न होनेसे उसका धड़ नीचे गिर गया ॥ २५ ॥ परंतु सिर अमर
हो गया और ब्रह्माजीने उसे ‘ग्रह’ बना दिया। वही राहु पर्वके दिन (पूर्णिमा और अमावस्याको)
वैर-भावसे बदला लेनेके लिये चन्द्रमा तथा सूर्यपर आक्रमण किया करता है ॥ २६ ॥ जब
देवताओंने अमृत पी लिया,
तब समस्त लोकोंको जीवनदान करनेवाले भगवान्ने बड़े-बड़े
दैत्योंके सामने ही मोहिनीरूप त्यागकर अपना वास्तविक रूप धारण कर लिया ॥ २७ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएंOm namo narayanay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंJay shree Krishna
जवाब देंहटाएंNamo Bhagwatay Vaasudevaay
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏
जवाब देंहटाएं🌹💖🌷जय श्री हरि: 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंनारायण नारायण नारायण नारायण
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय