॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – नवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)
मोहिनीरूप से भगवान् के द्वारा अमृत बाँटा जाना
कल्पयित्वा पृथक् पंक्तीः उभयेषां जगत्पतिः ।
तांश्चोपवेशयामास स्वेषु स्वेषु च पंक्तिषु ॥ २० ॥
दैत्यान् गृहीतकलसो वञ्चयन् उपसञ्चरैः ।
दूरस्थान् पाययामास जरामृत्युहरां सुधाम् ॥ २१ ॥
ते पालयन्तः समयं असुराः स्वकृतं नृप ।
तूष्णीमासन्कृतस्नेहाः स्त्रीविवादजुगुप्सया ॥ २२ ॥
तस्यां कृतातिप्रणयाः प्रणयापायकातराः ।
बहुमानेन चाबद्धा नोचुः किञ्चन विप्रियम् ॥ २३ ॥
भगवान् ने देवता और असुरोंकी अलग-अलग पंक्तियाँ बना दीं और
फिर दोनोंको कतार बाँधकर अपने-अपने दलमें बैठा दिया ॥ २० ॥ इसके बाद अमृतका कलश
हाथमें लेकर भगवान् दैत्योंके पास चले गये। उन्हें हाव-भाव और कटाक्षसे मोहित
करके दूर बैठे हुए देवताओंके पास आ गये तथा उन्हें अमृत पिलाने लगे, जिसे पी लेनेपर बुढ़ापे और मृत्युका नाश हो जाता है ॥ २१ ॥
परीक्षित् ! असुर अपनी की हुई प्रतिज्ञाका पालन कर रहे थे। उनका स्नेह भी हो गया
था और वे स्त्रीसे झगडऩेमें अपनी निन्दा भी समझते थे। इसलिये वे चुपचाप बैठे रहे ॥
२२ ॥ मोहिनीमें उनका अत्यन्त प्रेम हो गया था। वे डर रहे थे कि उससे हमारा
प्रेम-सम्बन्ध टूट न जाय। मोहिनीने भी पहले उन लोगोंका बड़ा सम्मान किया था, इससे वे और भी बँध गये थे। यही कारण है कि उन्होंने
मोहिनीको कोई अप्रिय बात नहीं कही ॥ २३ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jày shree Krishna
जवाब देंहटाएंजय श्री हरी
जवाब देंहटाएंOm namo narayanay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏
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जवाब देंहटाएं🌹💖🍂जय श्री हरि:🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंनारायण नारायण नारायण नारायण
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय