शनिवार, 28 सितंबर 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – नवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – नवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)

मोहिनीरूप से भगवान्‌ के द्वारा अमृत बाँटा जाना

प्राङ्‌मुखेषूपविष्टेषु सुरेषु दितिजेषु च ।
धूपामोदितशालायां जुष्टायां माल्यदीपकैः ॥ १६ ॥
तस्यां नरेन्द्र करभोरुरुशद्दुकूल
     श्रोणीतटालसगतिर्मदविह्वलाक्षी ।
सा कूजती कनकनूपुरशिञ्जितेन
     कुम्भस्तनी कलसपाणिरथाविवेश ॥ १७ ॥
तां श्रीसखीं कनककुण्डलचारुकर्ण
     नासाकपोलवदनां परदेवताख्याम् ।
संवीक्ष्य सम्मुमुहुरुत्स्मितवीक्षणेन
     देवासुरा विगलित स्तनपट्टिकान्ताम् ॥ १८ ॥
असुराणां सुधादानं सर्पाणामिव दुर्नयम् ।
मत्वा जातिनृशंसानां न तां व्यभजदच्युतः ॥ १९ ॥

जब देवता और दैत्य दोनों ही धूपसे सुगन्धित, मालाओं और दीपकोंसे सजे-सजाये भव्य भवनमें पूर्वकी ओर मुँह करके बैठ गये, तब हाथमें अमृतका कलश लेकर मोहिनी सभा मण्डपमें आयी। वह एक बड़ी सुन्दर साड़ी पहने हुए थी। नितम्बोंके भारके कारण वह धीरे-धीरे चल रही थी। आँखें मदसे विह्वल हो रही थीं। कलशके समान स्तन और गजशावक की सूँड क़े समान जङ्घाएँ थीं। उसके स्वर्णनूपुर अपनी झनकार से सभाभवन को मुखरित कर रहे थे ॥ १६-१७ ॥ सुन्दर कानों में सोनेके कुण्डल थे और उसकी नासिका, कपोल तथा मुख बड़े ही सुन्दर थे। स्वयं परदेवता भगवान्‌ मोहिनी के रूप में ऐसे जान पड़ते थे मानो लक्ष्मीजीकी कोई श्रेष्ठ सखी वहाँ आ गयी हो। मोहिनी ने अपनी मुसकानभरी चितवन से देवता और दैत्योंकी ओर देखा, तो वे सब-के-सब मोहित हो गये। उस समय उनके स्तनोंपरसे अञ्चल कुछ खिसक गया था ॥ १८ ॥ भगवान्‌ ने मोहिनीरूप में यह विचार किया कि असुर तो जन्मसे ही क्रूर स्वभाववाले हैं। इनको अमृत पिलाना सर्पों को दूध पिलाने के समान बड़ा अन्याय होगा। इसलिये उन्होंने असुरों को अमृत में भाग नहीं दिया ॥ १९ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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