॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – चौथा
अध्याय..(पोस्ट०४)
गज और ग्राह का पूर्वचरित्र तथा उनका उद्धार
श्रीभगवानुवाच
ये मां त्वां च सरश्चेदं गिरिकन्दरकाननम्
वेत्रकीचकवेणूनां गुल्मानि सुरपादपान् ||१७||
शृङ्गाणीमानि धिष्ण्यानि ब्रह्मणो मे शिवस्य च
क्षीरोदं मे प्रियं धाम श्वेतद्वीपं च भास्वरम् ||१८||
श्रीवत्सं कौस्तुभं मालां गदां कौमोदकीं मम
सुदर्शनं पाञ्चजन्यं सुपर्णं पतगेश्वरम् ||१९||
शेषं च मत्कलां सूक्ष्मां श्रियं देवीं मदाश्रयाम्
ब्रह्माणं नारदमृषिं भवं प्रह्रादमेव च ||२०||
मत्स्यकूर्मवराहाद्यैरवतारैः कृतानि मे
कर्माण्यनन्तपुण्यानि सूर्यं सोमं हुताशनम् ||२१||
प्रणवं सत्यमव्यक्तं गोविप्रान्धर्ममव्ययम्
दाक्षायणीर्धर्मपत्नीः सोमकश्यपयोरपि ||२२||
गङ्गां सरस्वतीं नन्दां कालिन्दीं सितवारणम्
ध्रुवं ब्रह्मऋषीन्सप्त पुण्यश्लोकांश्च मानवान् ||२३||
उत्थायापररात्रान्ते प्रयताः सुसमाहिताः
स्मरन्ति मम रूपाणि मुच्यन्ते ह्येनसोऽखिलात् ||२४||
ये मां स्तुवन्त्यनेनाङ्ग प्रतिबुध्य निशात्यये
तेषां प्राणात्यये चाहं ददामि विपुलां गतिम् ||२५||
श्रीशुक उवाच
इत्यादिश्य हृषीकेशः प्राध्माय जलजोत्तमम्
हर्षयन्विबुधानीकमारुरोह खगाधिपम् ||२६||
श्रीभगवान्ने कहा—जो लोग रात के पिछले पहर में उठकर इन्द्रियनिग्रहपूर्वक एकाग्र चित्त से मेरा, तेरा तथा इस सरोवर, पर्वत एवं कन्दरा,
वन,
बेंत, कीचक और
बाँसके झुरमुट,
यहाँके दिव्य वृक्ष तथा पर्वतशिखर, मेरे, ब्रह्माजी और
शिवजीके निवासस्थान,
मेरे प्यारे धाम क्षीरसागर, प्रकाशमय श्वेतद्वीप,
श्रीवत्स, कौस्तुभमणि, वनमाला, मेरी कौमोदकी
गदा,
सुदर्शन चक्र, पाञ्चजन्य शङ्ख,
पक्षिराज गरुड़, मेरे सूक्ष्म कलास्वरूप शेषजी, मेरे आश्रयमें रहनेवाली लक्ष्मीदेवी, ब्रह्माजी,
देवर्षि नारद, शङ्करजी तथा भक्तराज प्रह्लाद, मत्स्य,
कच्छप, वराह आदि
अवतारोंमें किये हुए मेरे अनन्त पुण्यमय चरित्र, सूर्य,
चन्द्रमा, अग्रि, ॐकार, सत्य, मूलप्रकृति, गौ,
ब्राह्मण, अविनाशी
सनातनधर्म,
सोम,
कश्यप और धर्मकी पत्नी दक्षकन्याएँ, गङ्गा, सरस्वती, अलकनन्दा, यमुना, ऐरावत हाथी, भक्तशिरोमणि ध्रुव,
सात ब्रहमर्षि और पवित्रकीर्ति (नल, युधिष्ठिर, जनक आदि)
महापुरुषोंका स्मरण करते हैं—वे समस्त
पापोंसे छूट जाते हैं;
क्योंकि ये सब-के-सब मेरे ही रूप हैं ॥ १७—२४ ॥ प्यारे गजेन्द्र ! जो लोग ब्राह्ममुहूर्तमें जगकर
तुम्हारी की हुई स्तुतिसे मेरा स्तवन करेंगे, मृत्युके समय उन्हें मैं निर्मल बुद्धिका दान करूँगा ॥ २५ ॥
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित् ! भगवान् श्रीकृष्णने ऐसा कहकर देवताओंको आनन्दित करते हुए अपना
श्रेष्ठ शङ्ख बजाया और गरुड़पर सवार हो गये ॥ २६ ॥
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां
संहितायामष्टमस्कन्धे
गजेन्द्र मोक्षणं नाम चतुर्थोऽध्यायः
हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
जय श्री हरि जय हो प्रभु
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंOm namo bhagawate vasudevay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंAum namo Narayan
जवाब देंहटाएंJai jai Shree Radhey
जवाब देंहटाएं💐💖🌷जय श्री हरि: !!🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण
Om namo bhagvate vasudevai!
जवाब देंहटाएं