॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – चौथा
अध्याय..(पोस्ट०३)
गज और ग्राह का पूर्वचरित्र तथा उनका उद्धार
श्रीशुक उवाच
एवं शप्त्वा गतोऽगस्त्यो भगवान्नृप सानुगः
इन्द्र द्युम्नोऽपि राजर्षिर्दिष्टं तदुपधारयन् ||११||
आपन्नः कौञ्जरीं योनिमात्मस्मृतिविनाशिनीम्
हर्यर्चनानुभावेन यद्गजत्वेऽप्यनुस्मृतिः ||१२||
एवं विमोक्ष्य गजयूथपमब्जनाभस्
तेनापि पार्षदगतिं गमितेन युक्तः
गन्धर्वसिद्धविबुधैरुपगीयमान
कर्माद्भुतं स्वभवनं गरुडासनोऽगात् ||१३||
एतन्महाराज तवेरितो मया
कृष्णानुभावो गजराजमोक्षणम् |
स्वर्ग्यं यशस्यं कलिकल्मषापहं
दुःस्वप्ननाशं कुरुवर्य शृण्वताम् ||१४||
यथानुकीर्तयन्त्येतच्छ्रेयस्कामा द्विजातयः
शुचयः प्रातरुत्थाय दुःस्वप्नाद्युपशान्तये ||१५||
इदमाह हरिः प्रीतो गजेन्द्रं कुरुसत्तम
शृण्वतां सर्वभूतानां सर्वभूतमयो विभुः ||१६||
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित् ! शाप एवं वरदान देनेमें समर्थ अगस्त्य ऋषि इस प्रकार शाप देकर
अपनी शिष्यमण्डलीके साथ वहाँसे चले गये। राजर्षि इन्द्रद्युम्र ने यह समझकर सन्तोष
किया कि यह मेरा प्रारब्ध ही था ॥ ११ ॥ इसके बाद आत्माकी विस्मृति करा देनेवाली
हाथीकी योनि उन्हें प्राप्त हुई। परंतु भगवान्की आराधनाका ऐसा प्रभाव है कि हाथी
होनेपर भी उन्हें भगवान्की स्मृति हो ही गयी ॥ १२ ॥ भगवान् श्रीहरिने इस प्रकार
गजेन्द्रका उद्धार करके उसे अपना पार्षद बना लिया। गन्धर्व, सिद्ध, देवता उनकी इस
लीलाका गान करने लगे और वे पार्षदरूप गजेन्द्रको साथ ले गरुड़पर सवार होकर अपने
अलौकिक धामको चले गये ॥ १३ ॥ कुरुवंश-शिरोमणि परीक्षित् ! मैंने भगवान्
श्रीकृष्णकी महिमा तथा गजेन्द्रके उद्धारकी कथा तुम्हें सुना दी। यह प्रसङ्ग
सुननेवालोंके कलिमल और दु:स्वप्नको मिटानेवाला एवं यश, उन्नति और स्वर्ग देनेवाला है ॥ १४ ॥ इसीसे कल्याणकामी
द्विजगण दु:स्वप्न आदिकी शान्तिके लिये प्रात:काल जगते ही पवित्र होकर इसका पाठ
करते हैं ॥ १५ ॥ परीक्षित् ! गजेन्द्रकी स्तुतिसे प्रसन्न होकर सर्वव्यापक एवं
सर्वभूतस्वरूप श्रीहरि भगवान्ने सब लोगोंके सामने ही उसे यह बात कही थी ॥ १६ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
जय श्री हरि जय हो प्रभु जय हो
जवाब देंहटाएंOm namo narayanay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएं🌺💖🌾जय श्री हरि: !!🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
ॐ नमो नारायण
Om namo bhagvate vasudevai!
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