ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – अठारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०७)
वामन भगवान् का प्रकट होकर
राजा बलि की यज्ञशाला में पधारना
श्रीबलिरुवाच
स्वागतं
ते नमस्तुभ्यं ब्रह्मन्किं करवाम ते
ब्रह्मर्षीणां
तपः साक्षान्मन्ये त्वार्य वपुर्धरम् ॥ २९ ॥
अद्य
नः पितरस्तृप्ता अद्य नः पावितं कुलम्
अद्य
स्विष्टः क्रतुरयं यद्भवानागतो गृहान् ॥ ३० ॥
अद्याग्नयो
मे सुहुता यथाविधि
द्विजात्मज
त्वच्चरणावनेजनैः
हतांहसो
वार्भिरियं च भूरहो
तथा
पुनीता तनुभिः पदैस्तव ॥ ३१ ॥
यद्यद्वटो
वाञ्छसि तत्प्रतीच्छ मे
त्वामर्थिनं
विप्रसुतानुतर्कये
गां
काञ्चनं गुणवद्धाम मृष्टं
तथान्नपेयमुत
वा विप्रकन्याम्
ग्रामान्समृद्धांस्तुरगान्गजान्वा
रथांस्तथार्हत्तम
सम्प्रतीच्छ ॥ ३२ ॥
बलिने कहा—ब्राह्मणकुमार
! आप भले पधारे। आपको मैं नमस्कार करता हूँ। आज्ञा कीजिये, मैं आपकी क्या सेवा करूँ ? आर्य ! ऐसा जान पड़ता है कि बड़े-बड़े ब्रहमर्षियों की तपस्या ही स्वयं
मूर्तिमान् होकर मेरे सामने आयी है ॥ २९ ॥ आज आप मेरे घर पधारे, इससे मेरे पितर तृप्त हो गये। आज मेरा वंश पवित्र हो गया।
आज मेरा यह यज्ञ सफल हो गया ॥ ३० ॥ ब्राह्मण- कुमार ! आपके पाँव पखारनेसे मेरे
सारे पाप धुल गये और विधिपूर्वक यज्ञ करनेसे, अग्नि में आहुति डालनेसे जो फल मिलता, वह अनायास ही मिल गया। आपके इन नन्हें-नन्हें चरणों और इनके धोवनसे पृथ्वी
पवित्र हो गयी ॥ ३१ ॥ ब्राह्मणकुमार ! ऐसा जान पड़ता है कि आप कुछ चाहते हैं। परम
पूज्य ब्रह्मचारीजी ! आप जो चाहते हों—गाय,
सोना, सामग्रियोंसे
सुसज्जित घर,
पवित्र अन्न, पीनेकी वस्तु,
विवाहके लिये ब्राह्मणकी कन्या, सम्पत्तियों से भरे हुए गाँव, घोड़े,
हाथी, रथ—वह सब आप मुझ से माँग लीजिये। अवश्य ही वह सब मुझ से माँग
लीजिये ॥ ३२ ॥
इति
श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायामष्टमस्कन्धे
वामनप्रादुर्भावे
बलिवामनसंवादोऽष्टादशोऽध्यायः
हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌺🌹🙏
जवाब देंहटाएंJay shree Krishna
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम जय हो प्रभु जय हो
जवाब देंहटाएंJai shree Krishna
जवाब देंहटाएं🌷श्रीमन्नारायण🌷
जवाब देंहटाएं🌹🍂💐जय श्री हरि: 🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण