॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – उन्नीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)
भगवान् वामन का बलि से तीन पग पृथ्वी माँगना,
बलि का वचन देना और शुक्राचार्यजी का उन्हें रोकना
श्रीबलिरुवाच
-
अहो
ब्राह्मणदायाद वाचस्ते वृद्धसम्मताः ।
त्वं
बालो बालिशमतिः स्वार्थं प्रत्यबुधो यथा ॥ १८ ॥
मां
वचोभिः समाराध्य लोकानां एकमीश्वरम् ।
पदत्रयं
वृणीते यो अबुद्धिमान् द्वीपदाशुषम् ॥ १९ ॥
न
पुमान् मां उपव्रज्य भूयो याचितुमर्हति ।
तस्माद्
वृत्तिकरीं भूमिं वटो कामं प्रतीच्छ मे ॥ २० ॥
राजा बलिने कहा—ब्राह्मणकुमार ! तुम्हारी बातें तो वृद्धों-जैसी हैं, परंतु तुम्हारी बुद्धि अभी बच्चोंकी-सी ही है। अभी तुम हो
भी तो बालक ही न,
इसीसे अपना हानि-लाभ नहीं समझ रहे हो ॥ १८ ॥ मैं तीनों
लोकोंका एकमात्र अधिपति हूँ और द्वीप-का-द्वीप दे सकता हूँ। जो मुझे अपनी वाणीसे
प्रसन्न कर ले और मुझसे केवल तीन डग भूमि माँगे—वह भी क्या बुद्धिमान् कहा जा सकता है ? ॥ १९ ॥ ब्रह्मचारीजी ! जो एक बार कुछ माँगनेके लिये मेरे पास आ गया, उसे फिर कभी किसीसे कुछ माँगनेकी आवश्यकता नहीं पडऩी
चाहिये। अत: अपनी जीविका चलानेके लिये तुम्हें जितनी भूमिकी आवश्यकता हो, उतनी मुझसे माँग लो ॥ २० ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
Jay shree Krishna
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जवाब देंहटाएंजय श्री सीताराम
जवाब देंहटाएंहे लीलाधर नारायण अनंत कोटि ब्रह्मांड नायक आपको सहस्त्रों सहस्त्रों कोटिश: वंदन 🙏💖🌹🍂🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
है गोविंद मेरे🌷
जवाब देंहटाएं